🔴श्रद्धा व उल्लास के साथ किया गया भगवान श्री चित्रगुप्त व गोबर्धन की पूजा, मनाया गया भैया दूज
🔵 युगान्धर टाइम्स व्यूरो
कुशीनगर। पडरौना नगर के रामकोला रोड "चित्रगुप्त धाम" स्थित श्री चित्रगुप्त मंदिर में भारी संख्या में उपस्थित भगवान श्री चित्रगुप्त के वंशजो ने भगवान श्री चित्रगुप्त की वैदिक रीति से पूजा-अर्चना की। तत्पश्चात कलम-दावात की विशेष पूजा करने के बाद सामूहिक हवन व महाआरती कर पूर्णाहुति की गयी।
यम द्वितीया अर्थात बुधवार को चित्रांश समाज के लोग अपने घर भगवान श्री चित्रगुप्त और कलम-दावात की विधिवत पूजा-अर्चना करने के बाद चित्रगुप्त मंदिर पहुंचे। यहां मंदिर के पीठाधीश्वर श्री अजयदास महाराज ने चित्रगुप्त वंशजो को भगवान श्री चित्रगुप्त के प्रतिमा के समक्ष वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूजन-अर्चन कराया। पूजा-अर्चना के बाद चित्रांश समाज द्वारा सामूहिक रूप से कलम-दावात की पूजा की गयी। इसके तहत सभी ने पहले से वितरित भगवान श्री चित्रगुप्तजी महाराज के चित्र से युक्त पृष्ठ पर विभिन्न देवी-देवताओं एवं श्री चित्रगुप्त महाराज के अनेक नामों को अंकित कर लिखित नमन किया। पूजा का शुभारम्भ श्री चित्रगुप्त मंदिर समिति के अध्यक्ष नरेन्द्र वर्मा ने किया। इसके बाद सभी चित्रांश समाज के लोगो ने लिखित पत्रों को भगवान श्री चित्रगुप्त की प्रतिमा के समक्ष अर्पित किया। तत्पश्चात भक्तिपूर्ण वातावरण मे सामूहिक हवन और महाआरती कर पूजन की पूर्णाहुति की गयी। मंदिर के पीठाधीश्वर अजयदास महाराज भगवान श्रीचित्रगुप्त की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा लेखन संबधित कार्य करने वालो के अलावा अकाल मृत्यु से बचने के लिए भगवान श्री चित्रगुप्त की पूजा हर वर्ग के लोगो को करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी त्यौहार सभी के लिए विशेष महत्व रखता है लेकिन विभिन्नता में एकता के प्रतीक इस देश में कोई पर्व किसी एक वर्ग के लिए नही बल्कि सभी के लिए महत्वपूर्ण है।
पुराणों के अनुसार जब ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना की तब सभी जीवों के कर्मो का लेखा-जोखा रखने का कार्य यमराज को दिया। यमराज ने भी खुशी-खुशी यह कार्य करने को राजी हो गये। परंतु प्राणियों को मृत्यु एवं दण्ड देने का काम ज्यादा होने के कारण उनका कार्य प्रभावित होने लगा। एक दिन यमराज, ब्रम्हा जी के पास जाकर अपनी समस्या बताते हुए पाप-पुण्य का सही और सटीक लेखा-जोखा रखने के लिए योग्य प्रधानमंत्री की मांग की। इसके बाद ब्रम्हा जी ने उन्हें आश्वासन देते हुए तपस्या पर चले गये। 11 हजार वर्षो तक तपस्या करने के बाद उनकी काया से एक दिव्य पुरूष की उत्पत्ति हुई। उत्पत्ति होने के बाद दिव्य पुरूष ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया। दिव्य पुरूष की वाणी को सुनते ही ब्रम्हा जी की समाधि भंग हो गई । उन्होंने आंख खोलते हुए दिव्य पुरूष को आर्शीवाद दिया और कहा कि मेरी काया से उत्पन्न हुए हो इसलिए तुम्हारी जाति कायस्थ होगी और तुम मेरे चित्र में गुप्त रूप से थे इस लिए तुम्हारा नाम चित्रगुप्त होगा।
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