अदूरदर्शी कूटनीति - Yugandhar Times

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Sunday, February 5, 2023

अदूरदर्शी कूटनीति

 

🔴 डॉ. सुधाकर कुमार मिश्रा 

 संयुक्त अरब अमीरात स्थित न्यूज़ चैनल अल - अरबिया को दिए गए एक साक्षात्कार में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा था कि "भारत के साथ वार्ता ईमानदार और अमन से की जाएगी " । इसके कुछ समय बाद एक साक्षात्कार में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कार्यालय से संदेश आया कि "भारत के नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेरा संदेश यही है कि आइए बातचीत की मेज पर बैठे हैं और कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों को हल करने के लिए गंभीर और  ईमानदार बातचीत करें"। इन दोनों पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने पर स्पष्ट होता है कि वर्तमान दौर में पाकिस्तान की आर्थिक हैसियत बद से बदतर है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री घरेलू आर्थिक चुनौतियां एवं सियासी संकट से अपने आवाम का ध्यान बिखेरने के लिए एक घटिया चाल चल रहे है, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का मकसद यह भी हो सकता है कि वह अपने परंपरागत शत्रु (भारत) से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर स्वयं को पाकिस्तान के भीतर वैश्विक स्तर पर एक कद्दावर नेता बनने की महत्वाकांक्षा रखते हो। कूटनीतिक  स्तर पर अध्ययन  करने से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान की बैदेशिक नीति "3A" से नियंत्रित होती है अर्थात A=Army (फौज/सेना), A=Allah (अल्लाह एवं मौलवियों का गूट तंत्र);और A= America (संयुक्त राज्य अमेरिका)

पाकिस्तान की सियासत की सफलता उसकी सेना को विश्वास में लिए बिना गतिमान नहीं हो सकती है, क्योंकि पाकिस्तान के अब तक के इतिहास पर गौर करने से यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान अपनी सेना से अलग होकर नागरिक शासन स्थिर नहीं कर सकता है। पाकिस्तानी राजनीतिक व्यवस्था की स्थिरता सेना /फौज की स्वीकृति पर निर्भर होती है ।अमूमन पाकिस्तान में संसदीय शासन प्रणाली है ,जो सिद्धांत स्तर पर विधायिका और कार्यपालिका के संलयन पर आधारित ना होकर अर्थात् विधायिका का कार्यपालिका (सरकार) पर नियंत्रण होती है, वही पाकिस्तानी राजनीतिक व्यवस्था में वहा की सरकार अपने प्रत्येक राजनीतिक आभार के लिए फौज पर निर्भर होती है। शाहबाज शरीफ ने कहा है कि पाकिस्तान ने भारत से तीन जंग लड़कर अपने सबक सीख लिया हैं उनका कहना है कि "अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम शांति से रहकर तरक्की करें या फिर आपस में लड़-झगड कर अपना समय और संसाधनो को बर्बाद करते रहें। हमने भारत से तीन जंग लड़ी और इन लडाईयों के वजह से यहां की आवाम के सामने मुश्किलें खडी हुई,गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी है। इससे हमने सबक सीखा हैं और हम अब अमन-चैन से रहना चाहते हैं। शर्त  बस यह है कि हम अपने असल मसले ( मुद्दे) हल करने में कामयाब हो जाएं"। उपर्युक्त भाषा को राजनीतिक और कूटनीतिक संदर्भों में देखने पर प्रधानमंत्री की विदेश नीति में लाचारी व विवशता दिख रही हैं।

🔵यह लेखक के अपने विचार है लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली मे असिस्टेंट प्रोफेसर है। 

sudhakarkmishra@gmail.com

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