🔵 डॉ. सुधाकर कुमार मिश्रा
सामान्य तौर पर विकासशील देशों को "3A"के रूप में देखा जाता है अर्थात A=Asia(एशिया);A=Africa (अफ्रीका) और, A=America (लैटिन अमेरिका) इन देशों की व्यवस्था नवोदित स्वतंत्र राष्ट्र की है अर्थात ये राष्ट्र साम्राज्यवाद के शिकार रहे हैं ,इनके आर्थिक संसाधनों का भरपूर दोहन किया गया है । इनकी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय, शोध व विकास का स्तर भी निम्न हैं। भारत वर्ष 2022 में विकासशील देशों के साथ आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया है, वर्ष 1961 में आयोजित गुटनिरपेक्ष देशों (NAM)के पहले सम्मेलन में व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाने की प्रतिबद्धता जताई गई थी एवं वर्ष 1972 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) ने अपने सदस्य देशों के बीच आर्थिक - संबंधों की मजबूती के लिए समझौता किए थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि विकासशील देश संपूर्ण मानवता की समृद्धि , लोक कल्याण एवं मानवता की भलाई और मानवीय समृद्धि वाला वैश्वीकरण चाहते हैं ।भारत G - 20 के अध्यक्ष की हैसियत से ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशो (कम विकसित देशों) से जुड़े सामयिक मुद्दों को उठाने का प्रयास करेगा ।भारत ग्लोबल साउथ उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना करेगा, यह केंद्र वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों की समस्याओं पर शोध करेगा एवं भारत अन्य विकासशील देशों के साथ विशेषज्ञता साझा करने के लिए वैश्विक दक्षिण विज्ञान की पहल प्रारंभ करेगा ,जो दक्षिण के विकासशील एवं अल्प विकासशील देशों की समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन करके उसके निदान के पहलुओं पर विचार- विमर्श करेंगे। पीएम मोदी ने ' आरोग्य मैत्री परियोजना ' का प्रारंभ किया जो प्राकृतिक आपदा, मानवीय संकट एवं मानवीय त्रासदी से प्रभावित विकासशील देशों को आवश्यक चिकित्सा सेवाओं को उपलब्ध कराएगा ।भारत इन देशों के साथ सामूहिक स्तर पर मानवीय संकट के निदान के लिए वैज्ञानिक शोध एवं विधियों को उपलब्ध कराएगा ।भारत को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है ,एक राष्ट्र के रूप में इसे आत्मा से समझा जा सकता है ।भारत ने वैश्विक स्तर पर प्रत्येक राष्ट्र- राज्य का दिल से स्वागत किया है चाहे वह किसी भी क्षेत्र ,धर्म, पंथ या राष्ट्रीयता का हो ।भारत के वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ रहा है इसके प्रभाव को संपूर्ण वैश्विक बिरादरी देखना और समझना चाह रही है। वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों एवं अल्प विकसित देशों को एक मंच पर एकता कायम करने की जरूरत है, विकासशील देशों को साथ लेकर वैश्विक राजनीतिक और वित्तीय प्रशासन की व्यवस्था को नए सिरे से तैयार करने की आवश्यकता है। इस उपादेयता के कारण वैश्विक स्तर के देशों की असमानता दूर होगी और अवसरों में वृद्धि होगी ।वैश्विक स्तर पर खाद्य ,इधन,उर्वरकों की बढ़ती कीमते वैश्विक महामारी( कोविड-19) से उत्पन्न वैश्विक समस्याएं ,जिससे सबसे अधिक संकट विकासशील देशों को हो रहा है।
प्राकृतिक आपदा एवं जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं के निराकरण के लिए विकासशील देशों के बीच एकजुटता आवश्यक है, क्योंकि एकता से समस्याओं का निदान किया जा सकता है । जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं से पूरी दुनिया परेशान है ।समय की मांग है कि इन समस्याओं के निदान के लिए सरल,टिकाऊ एवं व्यावहारिक समाधान ढूंढा जाए, जो समाज ,व्यवस्था और अर्थव्यवस्था में बदलाव ला सकें । वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों में आशावाद एवं विकासवाद के मंत्र को बताया गया है। इससे वैश्विक समस्याओं का त्वरित समाधान किया जा सकता है।विश्व के समक्ष उपस्थित व उत्पन्न अनेक महत्वपूर्ण एवं सामयिक चुनौतियों पर विकासशील देशों का दृष्टिकोण समान है। वर्ष 2022 के दिसंबर माह में साउथ सेंटर द्वारा जारी "अलिसेट फाइनेंसियल फ्लोज एंड स्टोलेन एसेट रिकवरी " में उपायुक्त सम समस्याओं की पुष्टि की गई है। इस आयोजन का मौलिक उद्देश्य दक्षिण के देशों(विकासशील देशों) के मध्य दृष्टिकोण एवं प्राथमिकताओं का उन्नयन करना है, क्योंकि इन देशों के साथ जलवायु व प्रदूषण की समस्याएं विकराल रूप लेती जा रही हैं। वास्तव में वैश्विक समुदाय में भारत की स्थिति बहुत अनोखी है। विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद भारत विशाल आबादी(130 करोड़ एवं विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था(IMF के आंकड़ों के आधार पर) के रूप मे स्थापित हो चुका है यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका ' बड़े भाई' के रूप में देखा जा रहा है ,भारत वैश्विक स्तर के मंचों (जी-20 की अध्यक्षता एवं एससीओ की अध्यक्षता) पर सक्रियता एवं सहभागिता बढा रहा है। वह विश्व व्यापार संगठन(WTO) एवं विश्व बैंक(WB) सहित वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों के हितों का पुरजोर वकालत कर रहा है।
🔴लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली से जुड़े है। यह उनका व्यक्तिगत विचार है। sudhakarkmishra@gmail.com
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