🔴 6 करोड़ वर्ष पुरानी शालिग्राम शिलाएं
🔴 संजय चाणक्य
कुशीनगर। पडोसी राष्ट्र व माता जानकी की मायका नेपाल की शालीग्रामी नदी से निकाली गयी शालीग्राम की दो शिलाए मंगलवार को कुशीनगर पहुंची। यहां भव्य स्वागत के साथ ग्यारह आचार्यों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के बीच शालीग्राम शिलाओ की विधिवत पूजा-अर्चना की गयी ।जय श्रीराम के जयघोष से बुद्धनगरी गुंजायमान हो उठा। इस दौरान ग्यारह पंडितों द्वारा किये जा रहे शंखनाद व बजाये जा रहे घंट आकर्षण का केंद्र रहा।
काबिलेगौर है कि भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में बने रहे प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर के मुख्य मंडप मे निर्मित होने वाले भगवान श्रीराम, माता जानकी, संकट-मोचन हनुमान के साथ प्रभु श्रीराम के सभी भाइयों की प्रतिमाओं का निर्माण शालिग्राम पत्थर से होना है। इसके लिए नेपाल के काली गंडकी नदी से शालीग्राम के 40 टन वजन की दो विशाल शिलाएं निकालकर दो ट्रकों के माध्यम से अयोध्या के लिए रवाना की गयी है। फूल-माला के साथ लाल, भगवा, पीला व सफेद कपडो से सजाकर इन शालीग्राम के शिलाओं को ट्रकों पर रखा गया। इसके बाद माता सीता की जन्मभूमि जनकपुर से होते हुए रामनगरी अयोध्या लाया जा रहा। सडक मार्ग से आगे बढ रहे शालीग्राम के दर्शन पूजन के लिए रास्ते मे लोगो की भीड उमड रहे है। दोनो शिलाओ में एक का वजन 26 टन व दुसरे का वजन 14 टन है। जानकारों ने शालीग्राम के इन शिलाओं को 6 करोड़ वर्ष पुराना बताया हैं।
शालीग्राम पत्थर नेपाल की काली गंडकी नदी मे मिलती है। काली गंडकी नदी को शालिग्रामी नदी के नाम से भी जाना जाता हैं। भारत मे यह नदी नारायणी नदी के नाम से विख्यात है। वैज्ञानिक तौर पर शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है। धार्मिक आधार पर शालीग्राम पत्थर का प्रयोग परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है। शालिग्राम पत्थर नेपाल की पवित्र नदी शालीग्रामी नदी (काली नदी) एंव भारत के नारायणी नदी की तली या किनारों से एकत्र किया जाता है। यह गोलाकार, आमतौर पर काले रंग का अलौकिक व मनोहारी पत्थर होता है जिसे भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पूजते हैं। शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रसिद्ध नाम है।
🔴 नेपाल सरकार ने दिसंबर में दी थी मंजूरीमीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री ने इन पवित्र शिलाओं को अयोध्या भेजे जाने के बारे में आगे बताया है कि 'मैं जानकी मंदिर के महंत और मेरे सहयोगी राम तपेश्वर दास के साथ अयोध्या गया था। हमारी ट्रस्ट के अधिकारियों और अयोध्या के अन्य संतों के साथ एक बैठक हुई थी। यह निर्णय लिया गया कि नेपाल की काली गंडकी नदी में पत्थर उपलब्ध होने पर उसी से रामलला की मूर्ति बनाना अच्छा रहेगा।' नेपाल सरकार ने पिछले महीने ही इन शिलाओ को अयोध्या भेजने की मंजूरी दी थी। अब इन्हें अयोध्या ले जाया जा रहा हैं।
🔴 शालीग्राम शिला से बने रामजन्म भूमि के पुराने मंदिरपुरातत्वविद व अयोध्या पर कई किताबें लिख चुके डॉ. देशराज उपाध्याय की माने तो, "नेपाल की शालिग्रामी नदी में काले रंग के एक विशेष प्रकार के पत्थर पाए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं में इन्हें शालिग्राम भगवान का रूप कहा जाता है। प्राचीनकाल की मूर्तिकला में इस पत्थर का इस्तेमाल किया जाता रहा है। शालिग्रामी पत्थर बेहद मजबूत होते हैं। इसलिए, शिल्पकार बारीक से बारीक आकृति उकेर लेते हैं। अयोध्या में भगवान राम की सांवली प्रतिमा इसी तरह की शिला पर बनी हैं। राम जन्मभूमि के पुराने मंदिर में कसौटी के अनेक स्तंभ इन्हीं शिलाओं से बने थे।
🔴शिला निकालने से पहले नदी से की गई क्षमा - याचना
बताया जाता है कि नदी के किनारे से शालीग्राम के इन विशाल शिलाखंड को निकालने से पहले विधिवत धार्मिक अनुष्ठान किए गए। नदी से क्षमा याचना की गई। विशेष पूजा की गई। उसके बाद इन शिलाओं को ट्रको पर रखकर गलेश्वर महादेव मंदिर ले जाया गया जहां मंत्रोच्चार के साथ रूद्राभिषेक किया गया। इसके बाद यह यह शिलाएं माता सीता की जन्मभूमि जनकपुर के रास्ते अयोध्या के लिए रवाना हुई। इस यात्रा के साथ नेपाल के पूर्व उप प्रधानमंत्री, जनकपुर के महंत भी है।
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