लोकभावना की हत्या - Yugandhar Times

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Friday, November 4, 2022

लोकभावना की हत्या

 

🔴 डाॅ. सुधाकर मिश्र

बीते रविवार गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बने सस्पेंशन पुल के गिरने से तकरीबन डेढ सौ से अधिक लोगों की मौत हो गई।लगभग 150 वर्ष पूर्व मोरबी के राजा सर वाधव जी ठाकोर ने इस झूलते पुल का निर्माण करवाया था।तत्कालीन समय में इसको भारत का कलात्मक और तकनीकी चमत्कार कहा जाता था।इस चमत्कारिक पुल का उदघाटन 20 फरवरी1879 को मुंबई के तत्कालीन गवर्नर रिचर्ड टेंपल ने किया था। इसकी भव्यता, कलात्मक सौंदर्यता और इसके आकर्षक सौंदर्य का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय इसके निर्माण में 3.5 लाख रुपए खर्च हुआ था।

इस पुल की बनावट राजपूत और इतावली शैली में हुआ है इसकी उपादेयता इस तथ्य में है कि मोरबी के सरकारी वेबसाइट के अनुसार सस्पेंशन पुल "प्रगतिशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण"का परिचायक है। केबल के तारो से लटक रहे इस तरह के पुल को झूला पुल भी कहा जाता है, अभियांत्रिकी की भाषा में ऐसे पुलो को सस्पेंशन पुल कहा जाता है।इस तरह के पुल खंभो पर टिके होने के बजाय केबल के सहारे टिके रहते है। ऐसे ऐतिहासिक विरासत के पुल अन्य राज्यों में भी है। उत्तराखंड के ऋषिकेश का लक्षुमन झूला और रामझूला झूलते पुल के सुंदर उदाहरण है। यहां पर प्रतिदिन हजारों पर्यटकों का आवागमन होता है। इससे राज्य के विकास में सहयोग होता है। मोरबी के झूलते पुल 1.25मीटर चौड़ा और 233 मीटर लंबा है। इसकी क्षमता 250 व्यक्तिवो की है । पर्यटन की दृष्टिकोण से भी यह पुल महत्पूर्ण है।स्थानीय प्रशासन के लापरवाही, सुरक्षाकर्मियों के गैरजिम्मेदारी  और टिकट बेचने वालो की व्यक्तिगत लापरवाही के कारण झूलते पुल पर व्यक्तिवो की संख्या 500 से अधिक हो गया था। नतीजतन अधिक भार को पुल झेल नही सका और केबल टूट गया और मानव निर्मित आपदा घटित हुआ। इस पूरी घटना का शल्य चिकित्सा करने से लापरवाही का मामला स्पष्ट होता है। 

भ्रष्टाचार की जड़ शासन, प्रशासन और नागरिकों से पूरी तरह घुल मिल गयी है। प्रशासनिक सुधार आयोग -2 के प्रतिवेदन में दो तरह के घूसखोरी बताए गए है कोयर्सिव (कानून का भय दिखाकर/कानून (पद)का भय दिखाकर) कल्यूसिव (समझौते से मध्यस्थ बनकरके ).इस तरह त्रिकोणीय गठबंधन में झूलते पुल वास्तव में झूल गया।घटना के पश्चात पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रधान मंत्री राहत कोष से मरने वाले व्यक्तियों के परिवार को दो लाख और घायल व्यक्ति या उसके परिवार को 50 हजार रुपये की आर्थिक सहायता देने कि घोषणा किए है। इसके अलावा गुजरात सरकार भी आर्थिक सहायता दे रही है;लेकिन प्रधानमंत्री को इस भ्रष्ट सिस्टम को जड से खत्म करने के लिए कोई ठोस पहल करनी चाहिए। भ्रष्टाचार मे लिप्त सरकारी मशीनरियो के खिलाफ सख्त कार्रवाई की परम्परा की श्रीगणेश करनी चाहिए। कहना न होगा कि नागरिक सचेतन के साथ सामूहिक व्यक्तिगत चेतना बदलने के लिए एक नैतिक क्रांति की आवश्यकता है जिससे प्रत्येक नागरिक अपने आत्मीय मूल्यों व विवेकी सूझबूझ से कार्य करे।

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली मे सहायक आचार्य है। यह लेखक का अपना विचार है। 

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