🔴 युगान्धर टाइम्स व्यूरो
कुशीनगर। दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के चाक पूरी गति से चल रहे हैं। केंद्र सरकार द्वारा चीन से निर्मित सामानो को देश में आने पर लगाई गई रोक से मिट्टी का सामान बनाने वालों को भरोसा है कि इस बार उनके बनाए गये दीपक, मटकी आदि की खूब बिक्री होगी और उनकी उम्मीद की दीपावली मनेगी। दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाने का विशेष महत्व माना जाता है।
काबिलेगौर है गांव में सदियों से पारंपरिक कला उद्योग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहां पूरा सहयोग मिलता रहा,वहीं गांव में रोजगार के अवसर भी इस बार मिलने की उम्मीद है। इनमें से ग्रामीण कुम्हारी कला भी एक रही है,जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी-रोटी का बड़ा सहारा रहा। पिछले कुछ वर्षों में आधुनिकता दौर में चाइनीज सामानों ने इस कला को पीछे धकेल दिया था लेकिन पिछले दो वर्षों से लोगों की सोच में खासा बदलाव आया है और एक बार फिर गांव की लुप्त होती इस कुम्हारी कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिलने लगे हैं। कुम्हारी कला से निर्मित खिलौने, दीपक, सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ी तो कुम्हारों के चेहरे खिल गए। पडरौना विकास खंड क्षेत्र के सिधुआं स्थान समेत कई गांवों में आज भी कुम्हार मिट्टी के दीये के साथ ही बच्चों के खिलौने जतोले,घंटी, भालू, हाथी,घोड़े आदि बनाते हैं। कहना न होगा कि चाइनीज झालरों व मोमबत्तियों की चकाचौंध ने दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था। दो तीन सालों से स्वयंसेवी संस्थाओं के आलावा सोशल मीडिया पर चलाये जा रहे जागरूकता अभियान से लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ी है। मिट्टी की दीपक व बच्चों के खिलौने अब फिर से शहर व गांवों के बाजारों में दिखने लगे हैं। मिट्टी से निर्मित होने वाले बर्तनों का उपयोग शुरू होने से पर्यावरण भी सुरक्षित हो रहा है।
🔴 सरकार से मदद की दरकरारसिधुआं स्थान गांव निवासी 62 साल के भूखल प्रजापति कहते है कि मिट्टी लाने एवं दीपक बनाने से लेकर उन्हें पकाने में जो लागत आती है, वह भी ठीक से नहीं निकल पाती है। दीपावली के बाद दो वक्त की रोटी जुटाने के लिये अन्य काम करने पड़ते हैं। इस कला को बचाने के लिए सरकारी मदद मिलनी चाहिए। हीरामन प्रजापति का कहना है कि मिट्टी से बने आइटम से लोगों का रुझान कम हो रहा है। इसमें मेहनत व पैसा अधिक लगता है, लेकिन उसका लाभ कम ही मिल पाता है, फिर भी पेट की आग बुझाने के लिये दीपावली पर काम करते हैं। अब मिट्टी के बर्तनों की बाजार में कोई कीमत नहीं रह गई है। दीपावली पर ही 10 से 15 हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है। इससे पूरे साल का खर्चा चला पाना मुश्किल भरा काम है। बाकी दिनों में मजदूरी से ही परिवार का गुजारा हो रहा है।
🔴मिट्टी को गढ़ने वालों से दूर हो रही धन लक्ष्मीमिट्टी गढ़कर उसे आकार देने वालों पर शायद धन लक्ष्मी मेहरबान नहीं है। अनेक परिवार अपने परंपरागत काम को छोड़कर अन्य कामों से अपने परिवार की गुजर-बसर कर रहे हैं। दीपावली पर मिट्टी के सामान तैयार करना उनके लिए अब सिर्फ एक सीजन बनकर रह गया है।
🔴सोशल मीडिया पर चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील
सीमा पर पड़ोसी देश चीन से बिगड़े संबंधों को लेकर चीनी सामान को प्रतिबंधित कर दिया गया है। देश में निर्मित सामान की दीपावली पर अधिक बिक्री होने की उम्मीद बढ़ चली है। विभिन्न संगठनों की ओर से सोशल मीडिया पर चीनी सामान की बजाय स्वदेशी सामान की खरीदारी करने की अपील शुरू हो चुकी हैं।
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