लोकतंत्र की परीक्षा मे कुशीनगर जनपद फेल - Yugandhar Times

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Friday, March 4, 2022

लोकतंत्र की परीक्षा मे कुशीनगर जनपद फेल

 

🔴 वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के अपेक्षा इस बार के चुनाव मे मतदान का प्रतिशत घटकर 55.66 फीसदी पर  सिमटा

🔴 पहले मतदान फिर जलपान का नारा  रह गया नारा बनकर

🔴 संजय चाणक्य 

कुशीनगर । मतदान की प्रतिशत बढाने मे कुशीनगर जनपद नाकाम साबित हुआ। लोकतंत्र की परीक्षा मे प्रशासनिक अमला प्रथम स्थान तो पाना दूर  पिछले विधानसभा के चुनाव का आकडा छूने मे भी सफल नही हुआ। पानी की तरह पैसा बहाकर मतदाताओं को जागरूक करने मे जिम्मेदारो की मेहनत हाथी दाँत साबित हुआ। नतीजतन पिछले एक दशक से लोकतंत्र की परीक्षा मे प्रथम स्थान हासिल करने की बनी कसक इस बार भी दूर नही हो सकी। तमाम मतदाता जागरुकता अभियान और गांव तक की गयी प्रशासनिक पहल सिर्फ दिखाने तक ही सिमट कर रह गयी। सबब यह है कि  बूथ तक जाने में मतदाताओं ने उतनी जागरूकता नहीं दिखाई, जिसकी जरूरत थी। युवाओं की भागीदारी बढ़ी जरूर, लेकिन उतनी नहीं जो 60 प्रतिशत मतदान का आंकड़ा छू सके।

काबिलेगोर है कि जिले की कुल आबादी 43 लाख 10 हजार 864 है। इसमें 21लाग 98 हजार 705 पुरुष व 21 लाख 12 हजार 157 महिलाएं हैं। मतदाताओं की संख्या पर नजर दौडाये तो वर्ष 2017 में मतदाताओं की संख्या 24 लाख 75 हजार 741 थी, जिसमें पुरुष 13 लाख 61 हजार 535 व महिला 11 लाख 13 हजार 984 एंव  अन्य मतदाता 222 रहे। बताया जाता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत 58.16 फीसदी रहा। महत्वपूर्ण बात यह है कि पांच वर्षों मे जिले मे कुल 1 लाख 63 हजार 503 मतदाताओं की संख्या मे वृद्धि हुई है। इसके फलस्वरूप कुल मतदाता 26 लाख 39 हजार 244 हो गए। इसमें पुरुष 13 लाख 90 हजार 729, महिला 12 लाख 48 हजार 304  तथा अन्य 211 मतदाता है। मजेदार बात यह है कि विगत पांच वर्षों मे मतदाताओं की संख्या बढ़ने के बाद भी पिछले विधानसभा चुनाव के अपेक्षा इस बार के चुनाव मे मतदान का प्रतिशत घटकर 55.66 फीसदी पर न सिर्फ सिमटकर रह गया। बल्कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के सापेक्ष इस बार ढाई प्रतिशत मतदान कम हुआ है, जो कही न कही प्रशासनिक अधिकारियों के निष्ठा पूर्ण जिम्मेदारी पर सवाल खडा करता है। पिछले चुनाव के अपेक्षा इस चुनाव मे ढाई फीसदी मतदान की हुई कमी यह इंगित करता है कि करोडो रुपये पानी की तरह बहाने के बावजूद  हम मतदान फीसदी बढ़ाने की बजाए घटाने की ओर बढ़ रहे हैं। मतलब यह कि " पहले मतदान फिर जलपान ' का नारा  सिर्फ नारा बनकर ही रह गया है।  यही वजह है कि पिछले एक दशक से लोकतंत्र की परीक्षा मे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण न होने की कसक को यहा का जिला प्रशासन महसूस नहीं कर पा रहा।

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