🔴 संजय चाणक्य
कुशीनगर। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी छोड़ कर समाजवादी पार्टी का दामन थामने वाले पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को जनपद के फाजिलनगर सीट से चुनावी वैतरणी पार करना आसान नही है यहा भाजपा, सपा और बसपा की त्रिकोणीय लडाई कांटे की है। ऐसे मे मौर्या को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए लोहे चने चबाने पडेगे। सबब यह है कि फाजिलनगर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण मे सबसे अधिक मतदाताओं की संख्या अल्पसंख्यक समाज की है, उसके बाद ब्राह्मण और फिर कुर्मी मतदाता हैं। इसके अलावा चौथे नम्बर पर कुशवाहा, पांचवे पर दलित समाज तो छठवें नम्बर पर यादव व वैश्य समाज के मतदाता हैं।
काबिलेगोर है कि सपा प्रत्याशी स्वामी प्रसाद मौर्य के सामने भाजपा ने इस सीट से लगातार दो बार विधायक रहे गंगा सिंह कुशवाहा के पुत्र सुरेंद्र कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है जबकि बसपा ने सपा के कद्दावर नेता रहे इलियास अंसारी को अपने साथ जोड़ कर चुनाव मैदान में उतारा है। राजनीतिक जानकारों की माने तो फाजिलनगर विधानसभा सीट भाजपा और सपा दोनो की प्रतिष्ठा बन गयी है। कहना न होगा कि चुनाव से पूर्व स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा सरकार में मंत्री थे और अपना कार्यकाल पुरा करने के साथ ही चुनाव अधिसूचना जारी के होने के बाद दर्जन भर नेताओं के साथ भाजपा पर गम्भीर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ सपा का दामन थाम लिए। इतना ही नही मौर्य प्रदेश में सपा की सरकार बनाने के लिए धुंआंधार चुनाव प्रचार में भी लगे थे और उनके पुत्र अशोक मौर्य फाजिलनगर क्षेत्र मे चुनावी जंग की पिच तैयार कर रहे थे। अब स्वामी प्रसाद मौर्य खुद क्षेत्र में पहुंच कमान संभाल चुके है जबकि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ने स्वामी प्रसाद मौर्य को घेरने के लिए चक्रव्यूह की रचना शुरू कर दिया है। इसके लिए पार्टी ने अपने स्टार प्रचारकों को यहां भेजना शुरू कर दिया है। इधर बसपा प्रत्याशी दलित समाज के साथ अल्पसंख्यक समाज को अपने साथ जोड़कर बड़ा धमाल करने की रणनीति बना रहे है। ऐसी चर्चा है कि बसपा प्रत्याशी इलियास अंसारी का सर्वसमाज में अच्छी पकड़ है। ऐसे में बसपा प्रत्याशी भाजपा और सपा दोनों ही दलों के मतदाताओं को साधते दिख रहे है। राजनीतिक जानकार बताते है कि फाजिलनगर के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अल्पसंख्यक, ब्राह्मण एवं कुर्मी मतदाताओं की हो सकती है।
🔴 अल्पसंख्यक सपा और बसपा दोनो पाले मे
वर्तमान स्थिति गौर करे तो अल्पसंख्यक सपा और बसपा दोनों के पाले में दिख रहा, लेकिन चुनाव के समय उसकी स्थिति क्या होगी यह आने वाला समय बताएगा जबकि अधिकांश ब्राह्मण मतदाता भाजपा के पाले में देखे जि सकते है हालांकि कुछ ब्राह्मण सपा व बसपा के पक्ष में भी जा सकते हैं। वहीं चनाउ, अवधिया और कुर्मी मतदाताओं का झूकाव भाजपा और सपा दोनों तरफ दिख रहा। इसके अलावा कुशवाहा समाज भाजपा व सपा दोनों ओर जा रहा है जबकि यादव सपा और वैश्य भाजपा के साथ खडा है। कुल मिलाकर जो पार्टी ब्राह्मण एवं चनाउ, कुर्मी और अवधिया मतदाताओं को अपने ओर आकर्षित कर लेगा उसे चुनाव में बड़ा लाभ मिल सकता है।
राजनीतिक जानकारों की माने तो चुनाव में छोटी तदात में सैनी, मुसहर, गौंड़, भर, शर्मा (लोहार, बढ़ई), साहनी, रावत, भेडि़हार, चौहान व अन्य दर्जनभर समाज के मतदाताओं की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकता है। कारण यह है कि इस समाज के लोगों को चुनाव मे कम आंका जाता है। इन बिरादरी के लोगो का हमेशा से यह आरोप रहा है कि चुनाव मे उनकी पूछ नही होती है किसी भी दल का नेता उनकी खोज-खबर नही रखता है। ऐसे में इन बिरादरियो को जो दल या प्रत्याशी साध लिया, यकीनन परिणाम बदल सकता है। राजनीतिक जानकारों के हिसाब से जो तस्वीर दिख रही है, उसके मुताबिक यहां की लड़ाई त्रिकोणीय है। अगर बसपा ने मजबूती से चुनाव लड़ा तो निश्चित ही परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं। ऐसे मे कहना लाजमी होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य की राह बहुत कठिन डगर पनघट की।
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