पडरौना विधानसभा सभा पर सर्वाधिक कांग्रेस का रहा कब्जा - Yugandhar Times

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Tuesday, February 1, 2022

पडरौना विधानसभा सभा पर सर्वाधिक कांग्रेस का रहा कब्जा

🔴 लगातार तीन बार कांग्रेस के चंद्रदेव तिवारी व आरपीएन के सिर पर बधा जीत का सेहरा

🔴 वर्ष 1991 मे भाजपा 2009 मे बसपा का खुला खाता

🔴 संजय चाणक्य 

कुशीनगर। जनपद के एक आशिंक सहित कुल सात विधानसभा सभाओ मे शामिल पडरौना विधानसभा पर आजादी के बाद से सबसे अधिक आठ बार कांग्रेस का कब्जा रहा। कहना न होगा कि गन्ने की मिठास के लिए मशहूर पडरौना विधानसभा की जनता ने हर विचारधारा को मौका दिया है. यहां तक की इस सीट से 1989 में सीपीआई के उम्मीदवार के सिर पर जनता ने जीत का सेहरा बाधा  है. फिलहाल 2009 से इस सीट पर बीजेपी को जीत मिल रही है. बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में गए स्वामी प्रसाद मौर्ट यहां से 2017 में जीते थे। 

काबिलेगोर है कि पडरौना विधानसभा में तकरीबन साढे तीन लाख मतदाता हैं। आकड़े पर नजर दौडाये तो इस सीट पर सबसे अधिक 84 हजार मुस्‍लिम मतदाता हैं जबकि  अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या करीब 76 हजार हैं। इसके अलावा  ब्राह्मण मतदाता 52 हजार, यादव 48 हजार, सैंथवार 46 हजार, और कोइरी जाति के करीब 44 हजार वोटर हैं। दिलचस्प यह है कि यहा मुख्य रूप गन्ना खेती और व्यवसाय का जरिया हुआ करती थी। लेकिन चीनी मिलों के बंद हो जाने के कारण अब इस इलाके में उस तरह से गन्ने की खेती नहीं होती है, जैसे पहले होती थी. इसके अलावा कोई बड़ा रोजगार का जरिया इस इलाके में नहीं है।

🔴 पडरौना विधानसभा सीट का इतिहास

पडरौना विधानसभा सीट के इतिहास पर गौर करे  तो यहां से पहले विधानसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के जगरनाथ मल्ल पहले विधायक निर्वाचित हुए थे। इसके बाद  वर्ष 1957, 1962 और 1967 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर  चुनावी रणभूमि मे ताल ठोक रहे चंद्रदेव तिवारी जीते. वहीं 1969 के चुनाव में पडरौना राजघराने के राजा और आरपीएन सिंह के पिता सीपीएन सिंह कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए। वर्ष 1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर पुरुषोत्तम कौशिक विधायक बने। वो 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर  दुबारा जीतकर विधानसभा मे पहुचे। इसी तरह से 1980 में कांग्रेस के बीके मिश्र इस सीट से विधायक चुने गए. लोक दल के बालेश्वर यादव 1985 में जीते थे.  उसके बाद 1989 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के असगर अली विधायक चुने गए। देश के कई राज्यों और केंद्र में सरकार चला रही बीजेपी के हिस्से में यह सीट 1991 में आयी। उस समय बीजेपी के टिकट पर सुरेंद्र शुक्ल जीते थे। साल 1993 में बालेश्वर यादव सपा के टिकट पर इस सीट से विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 1996, 2002 और 2007 में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर आरपीएन सिंह चुनाव जीते।

आरपीएन सिंह 2009 में पडरौना लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। इसके बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. उनके इस्तीफे के बाद कराए गए उपचुनाव में बसपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य को पडरौना के चुनाव मैदान में उतारा. मौर्य ने 2009 के उपचुनाव में आरपीएन सिंह की मां मोहीनीदेवी को हराकर विधायक बने। फिर मौर्य को 2012 में बसपा ने अपना उम्मीदवार बनाया.  उन्होंने कांग्रेस के राजेश कुमार जायसवाल को 8 हजार 162 वोट से हराया. मौर्य 2017 के चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे. बीजेपी ने उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट दिया. मौर्य ने 2017 के चुनाव में बसपा के जावेद इकबाल को 40 हजार 552 वोट के भारी अंतर से हराया।

🔴  ज्यादातर सत्ता के खिलाफ रहा परिणाम

बेशक! पुराने दौर में गन्ना, गंडक और गुंडा के नाम से पडरौना विधानसभा की पहचान रही। दौर बदले तो पहचान बदली और लोगों ने विकास महसूस करना शुरू किया। समय बदलने के साथ मुद्दे भी बदले और लोगों ने  अपने पसंद के अनुसार जनप्रतिनिधि चुने। एक समय था जब कुशीनगर जिला चीनी मिलों के मामले में समृद्ध था। बाद के दिनों में मिलें बंद होने लगी और किसान बदहाल होने लगे। शायद यही वजह रही कि यहां के मतदाताओं का ज्यादातर रूझान शुरुआत से ही सत्ताविरोधी रहा। समय बदलने के साथ जंगल पार्टी का सफाया हुआ और लोगों ने बदलाव का दौर महसूस किया। नेपाल की पहाड़ियों से आने वाली नदी नारायणी कुशीनगर के लिए कभी वरदान हुआ करती थी। यह नदी बाढ़ के लिए भी जानी जाने लगी। इस सीट पर सबसे अधिक कांग्रेस का आठ बार कब्जा रहा। दो बार बीकेडी व एक-एक बार जेएनपी, एलकेडी, सीपीआई व सपा को कामयाबी मिली।

🔴 2009 मे खुला बसपा का खाता

कुशीनगर जिले में बसपा का पहली बार खाता वर्ष 2009 में हुए उपचुनाव में पडरौना विधानसभा सीट से ही खुला था। बसपा यहां से दो बार अपने दल का विधायक बनाने में कामयाब रही है। भाजपा अब तक कुल दो बार यहां से जीती है। मौजूदा विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जो बीते दिनो भाजपा छोडकर सपा मे शामिल हो गये है।




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