🔴 चौबीस घंटा आक्सीजन के सहारे जिन्दगी और मौत से जूझ रहा है अंकुर
🔴 संजय चाणक्य
कुशीनगर। दर्दनाक पीडा सहन कर बुढी दादी और पिता पर बोझ बनकर जिन्दगी और मौत से जूझ रहे अंंकुर की सांसे थम गयी। ऊपर वाले ने उसकी मौत की दुआ कबूल कर न सिर्फ उसे असहनीय पीडा से छुटकारा दे दिया बल्कि सांस की डोर टूटने के बाद उसे हर तकलीफ और उम्मीद से मुक्ति मिल गयी। हालांकि वह अपनी पीडा से निजात पाने के लिए राष्ट्रपति से भी मौत की गुहार लगाया था। किन्तु राष्ट्रपति के दरबार से उसे कोई जबाब नही मिला। अंकुर की जिन्दगी की डोर बेशक ऊपर वाले के हाथो मे थी लेकिन उसकी मौत शासन- सत्ता और समाज सेवा के दम भरने वाले समाजसेवियों की उपेक्षा के कारण हुई है जो उसकी मदद के लिए आगे आने की बात तो दूर पहल भी नही किए।
तीन माह से वह चौबीस घंटा आक्सीजन के सहारे बिस्तर पर अपनी मौत की दुआ मांगने वाला अंकुर अपने पिता और दादी की बेबसी और लाचारी देख उनके सामने अपना असहनीय दर्द छुपाकर होठो पर मुस्कान लाने का प्रयास करता था लेकिन उसके बनावटी मुस्कान के पीछे छिपे दर्द को पिता और दादी बखूबी महसूस करते थे। जिन्दगी के मजह 35 बसंत देखने वाला अंकुर श्रीवास्तव तीन माह से गंभीर बीमारी के चपेट मे आकर गरीबी और लाचारी के कारण इलाज के आभाव मे घूट-घूट कर न सिर्फ जी रहा था बल्कि चौबीस घंटा आक्सीजन के सहारे बिस्तर पर अपनी मौत की दुआ भी मांग रहा था, देर सबेर भगवान ने उसकी सुन ली और गुरुवार को देर शाम उसकी सांसे थम गयी। पडरौना नगर के साहबगंज मुहल्ले के निवासी राकेश श्रीवास्तव के इकलौता बुढापे की लाठी अंकुर श्वास रोग (अस्थमा) से ग्रसित था उसका फेफडा पुरी तरह से खराब हो गया है। एम्स और मेदातां के चिकित्सकों ने दो माह के भीतर अंकुर के फेफड़ों का ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दिए थे। इसके लिए तकरीबन चालीस लाख रुपये का खर्च बताया था। अपने बुढापे की लाठी के सहारे सुन्दर भविष्य की सपना देखने वाले पिता राकेश के उस समय पैर तले जमीन खिसक गयी जब उन्हे तीन माह पूर्व अपने लख्ते जिगर अंकुर की बीमारी की जानकारी हुई। वह काप उठे मानो उनकी दुनिया ही उजड गयी क्योंकि अट्ठारह वर्ष पूर्व इसी बीमारी ने असमय उनकी पत्नी को उनसे छिन लिया था। एक निजी कंपनी मे जीवन बीमा एजेंट के रूप मे कार्य करने वाले राकेश श्रीवास्तव अपने जिगर के टुकड़े की जिन्दगी बचाने के लिए अपने जिन्दगी भर की कमाई इकट्ठा कर अक्टूबर माह मे बेटे को लेकर मेदांता हॉस्पिटल दिल्ली गये। यहां लाखो रुपये खर्च करने के बाद बेटे के बीमारी मे कोई सुधार नही हुआ तो फिर राष्ट्रीय क्षय एवं श्वास रोग संस्थान और एम्स मे महीनो भर्ती कराकर अपने बेटे का इलाज कराया। पानी की तरह पैसा खर्च करने के बावजूद अंकुर के स्वास्थ्य मे कोई सुधार नही हुआ। पिता राकेश जब वह पुरी तरह से कंगाल हो गये तो चिकित्सकों ने यह कहकर उन्हे घर वापस भेज दिया कि दो माह के भीतर अगर हैदराबाद में अंकुर के फेफड़े का ट्रांसप्लांट नही हुआ तो उसे बचाया नही जा सकता। इसके लिए लगभग लाख रुपये खर्च लगेगा।
🔴 मुख्यमंत्री कोष से इलाज कराने के लिए डीएम ने की थी पहल
बीते माह पीडित अंकुर के पिता राकेश समाचार पत्रों मे छपे खबरो के कटिंग व हास्पिटल के सभी रिपोर्ट को लेकर जिलाधिकारी एस राजलिंगम से मिलकर अपने जिगर के टुकड़े को बचाने की गुहार लगाई थी। जिलाधिकारी श्री लिंगम अपने मुख्यमंत्री राहत कोष का लाभ दिलाने के लिए बारह घंटे के भीतर सारी औपचारिकताएं पुरी कराते हुए अंकुर की फाइल मुख्यमंत्री के यहा भेजवा थी किन्तु अफसोस कुछ तकनीकी कारणों के वजह अंकुर का इलाज मुख्यमंत्री कोष से नही हो सका था।
🔴 बदनसीब बाप हू
पिता राकेश बिलखते हुए कहते है हर बाप की इच्छा होती है कि बेटे के कंधे पर उसकी अर्थी उठे लेकिन मै दुनिया का सबसे बदनसीब बाप हू जो इस बूढे कंधे पर अपने बेटे की अर्थी उठाने के लिए मजबूर हू। नब्बे वर्षीय बूढी दादी सुभावती देवी बिलबिलाते हुए कहती है भगवान हमके उठा लेतन हमरे बाबू के जिन्दगी लौटा देतन।
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