🔴 समाजवादी विजय रथयात्रा मे दिखा गुटबाजी का असर
🔴तमाम नेताओ के बैनर-पोस्टर से गायब रहे जिलाध्यक्ष
🔴 संजय चाणक्य
कुशीनगर । देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ता पाने के लिए सपा मुखिया अखिलेश यादव अपने पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए विजय यात्रा के जरिये अपने चुनाव अभियान का जो बिगुल बजाया है वह यात्रा लोगों का मिज़ाज बदलने में किस हद तक सफल होगी, यह तो भविष्य के गर्भ छिपा है। लेकिन इतना तय है कि स्थानीय स्तर पर नेताओ की गुटबाजी कही सपा को गर्त मे न धकेल दे। शायद यही वजह है कि सपा मुखिया जनपद के सातो विधानसभा घूमने के बाद सेवरही विधानसभा के मुख्य दावेदार पूर्व विधायक नंदकिशोर मिश्र को छोड किसी को खास तरजीह नही दिया।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव पर नजर दौडाये तो सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था और पूरे राज्य में राहुल गांधी व अखिलेश यादव की तस्वीर वाले होर्डिंग्स लगाकर नारा दिया गया था- "यूपी को यह साथ पसंद है." लेकिन जनता को उस जोड़ी का साथ पसंद नहीं आया और उसने बीजेपी को सत्ता में लाकर दोनों पार्टियों का लगभग सूपड़ा ही साफ कर दिया था। उस चुनाव में हिंदुत्व के रथ पर सवार योगी आदित्यनाथ के आक्रामक प्रचार के दम पर बीजेपी को 312 सीटें मिली थी और अपने बूते पर ही तीन थम बहुमत हासिल किया था। तब सपा-कांग्रेस गठबंधन को 54 और मायावती की बीएसपी को महज 19 सीटें ही मिल पाई थीं। ऐसे मे अगर पार्टी के अन्दर स्थानीय नेताओं की गुटबाजी इसी तरह करवट लेती रही तो अखिलेश के मेहनत पर पानी फिरना स्वाभाविक होगा। इतना ही नही अगर समय रहते पार्टी मे स्थानीय नेताओं की गुटबाजी पर विराम नही लगाया गया तो पार्टी नेताओं के बीच आमने-सामने का मुकाबला होना तय है।
कहना न होगा कि अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए समाजवादी विजय रथ लेकर निकले हैं अखिलेश के कुशीनगर आगमन पर सपाईयो की गुटबाजी बैनर-पोस्टर से लगायत मंच तक देखने को मिली है। सपा मुखिया व सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री के कुशीनगर मे 13 नवंबर से दो दिवसीय कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पार्टी के पदाधिकारी व कार्यकर्ता अपने ढंग से जुटे हुए थे। इसी क्रम मे जगह-जगह तोरण द्वार और बैनर-पोस्टर से पूरे जिले को सजाया गया था। इस दौरान स्वागत व उत्साह के बीच गुटबाजी भी पूरी दमदारी से उभरकर सामने आई। बैनर-पोस्टर में कई कद्दावर नेताओं का फोटो और नाम नदारत था। मतलब यह कि हर नेता बैनर - पोस्टर के माध्यम से अपनी डफली अपना राग अलाप करते हुए देखे गये। इतना ही नही तमाम बड़े नेताओ के बैनर-पोस्टर से पार्टी के जिलाध्यक्ष के नाम और तस्वीर भी गायब रहा। बात यही खत्म हो जाती तो और बात थी। लेकिन ऐसा हुआ नही, कप्तानगंज में दो पूर्व विधायकों ने कुछ ही दूरी पर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के स्वागत के लिए अलग-अलग मंच लगा रखे थे। इस दरम्यान जब अखिलेश पहुंचे तो स्वागत में दोनो मंचो से अलग-अलग नेताओ के समर्थकों द्वारा नारेबाजी भी होती रही। हालांकि, पार्टी के जिलाध्यक्ष डा. मनोज यादव का कहना है कि कहीं कोई गुटबाजी नहीं थी। सभी में उत्साह था, सबने अपने-अपने ढंग से स्वागत किया है।
🔴 चर्चाओं का बना विषयरविवार को सपा अध्यक्ष अपने दुसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत प्रेसवार्ता से किए। कुशीनगर के एक होटल मे पत्रकारों से रुबरु हुए सपा प्रमुख सूबे के मुखिया योगी और केन्द्र सरकार के गृहमंत्री अमित शाह पर हमलावर दिखे। इस दौरान अखिलेश के साथ सपा जिलाध्यक्ष मनोज यादव, हाटा के पूर्व विधायक राधेश्याम सिंह, पूर्व कैबिनेट मंत्री बम्हाशंकर त्रिपाठी, कनकलता सिंह व एमएलसी रामअवध यादव एक साथ बैठे हुए थे। लेकिन सपा के कद्दावर नेता व मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी माने जाने वाले पूर्व सांसद बालेश्वर यादव कही नही दिखे। बालेश्वर को सपा मुखिया के ईर्द-गिर्द न पाकर राजनीतिक गलियारो मे चर्चाओं का बाजार गर्म है। रामकोला के पूर्व विधायक डा0 पूर्णवासी देहाती भी कही नजर नही आये।इसके अलावा सपा के जिला महासचिव सकुरुलाल्ह अंसारी की नाराजगी भी खुलकर देखी गयी। इनका आरोप है कि षडयंत्र के तहत अखिलेश के साथ मंच साझा करने वालो की सूची से उनका नाम काट दिया गया, उन्हे मंच पर चढने नही दिया गया जिसका इन्होने फैशबुक के जरिए खुलकर न सिर्फ विरोध किया बल्कि सोशल मीडिया पर सकुरुलाह ने जमकर अपनी भडास भी निकाली है। ऐसे कहना लाजमी होगा कि सपा मे यह गुटबाजी लंबे समय तक यू ही चलती रही तो मिशन 2022 मे बाइसिकल पर पानी फिरने से इंकार नही किया जा सकता है।
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