🔴 बिहार के बगहा जिले से से कुशीनगर के सात गांव होगे बिहार से सम्मलित
🔴 संजय चाणक्य
कुशीनगर । जिले के खड्डा क्षेत्र के नारायणी उस बसे सात राजस्व गावों को आजादी के सात दशक बाद दुश्वारियों से आजादी मिलने की कवायद शुरू हो गयी है। सबब यह है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के बीच सात-सात गांवों की अदला-बदली करने की तैयारी चल रही है। इसको लेकर दोनो राज्यों मे सहमति बन गयी है अब दोनों राज्य केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजने की तैयारी मे है। केन्द्र सरकार का अनुमोदन मिलते ही गांवों की अदला-बदली करने की प्रक्रिया पूरी कर ली जायेगी।
काबिलेगोर है कि कुशीनगर जिले के खड्डा क्षेत्र के रेता इलाके कहे जाने वाले के नरसिंहपुर, मरिचहवा, शिवपुर, नरायनपुर, बसंतपुर, बालगोविन्द छपरा व हरिहरपुर गांव बिहार के बगहा जिले से सटे है जो यूपी से एक तरह से कटे हुए हैं। वहां जाने के लिए महरागंज व बिहार की सीमा में प्रवेश करके जाना पड़ता है। बताया जाता है कि इन गावो मे जाने के लिए यूपी प्रशासन को बीस से पच्चीस किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पडती है। दोनो राज्यों की गांवो की अदला-बदली होने पर विकास के साथ आवागमन का मार्ग भी प्रशस्त होगा। यही वजह है कि इन गावों को बिहार में शामिल करने की प्रक्रिया तेज हो गयी है। बिहार में बगहा के जिला प्रशासन ने कुशीनगर के इन गावों को बिहार में शामिल करने तथा जिले के खड्डा तहसील क्षेत्र से सटे बगहा बिहार के सात गावों को कुशीनगर जिले में शामिल करने का प्रस्ताव बनाया है।
सूत्रो की माने तो पडोसी राज्य बिहार प्रमंडल के आयुक्त ने इसको लेकर वहा जिलाधिकारी कुंदन कुमार को पत्र भेज कर यूपी की सीमा से सटे बिहार के सात गांवों का प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है। आयुक्त ने अपने पत्र में कहा है कि गंडक पार के पिपरासी प्रखंड का बैरी स्थान, मंझरिया, मझरिया खास, श्रीपतनगर, नैनहा, भैसही व कतकी गांव में जाने के लिए प्रशासन सहित ग्रामीणों को यूपी होकर आना-जाना पड़ता है। यूपी के रास्ते इस गांवों में जाने से प्रशासनिक परेशानी होती है। साथ ही समय भी अधिक लगता है। इससे विकास योजनाओं के संचालन में प्रशासनिक अधिकारियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पडता है। यहां के लोगों को प्राकृतिक आपदा के वक्त राहत पहुंचाने में भी परेशानी होती है।
🔴 गांवो मे भूमि विवाद पर लगेगा विराम
दोनो राज्यों के बीच गांवों की अदला-बदली होने के बाद न सिर्फ सीमा विवाद खत्म हो जायेगा बल्कि इससे भूमि विवाद के मामले भी विराम लग जायेगा। किसानों को खेती-बाड़ी में सहूलियत होगी। गौरतलब है कि बगहा अनुमंडल के नौरंगिया थाने के मिश्रौलिया मौजा के किसान विगत कुछ वर्षों से भूमि के सीमांकन को लेकर आमने सामने होते रहे हैं। साथ ही प्रशासनिक स्तर पर भी सीमा को लेकर कई बार पैमाइश की करवाई की जा चुकी है। प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ से सीमांकन खत्म हो जाता है। इसके बाद किसानों के बीच भूमि विवाद शुरू हो जाता है।
🔴 बाढ़ और आपदा के समय राहत पहुचाने मे मिलेगी सहूलियत
बता दे कि यूपी व बिहार के दर्जनभर गांव एक-दूसरे की सीमा से सटे हैं। इन गांवों में आने-जाने के लिए एक-दूसरे के राज्यों से होकर ही जाना पडता है। बाढ़ व अन्य आपदा के समय लोगों तक राहत पहुंचाने में दोनों ही राज्यों की सरकार व प्रशासन को परेशानी होती है। पश्चिमी चम्पारण के सीओ बगहा-2 राजीव रंजन श्रीवास्तव ने कहा, 'आयुक्त व जिलाधिकारी के पत्र पर प्रस्तावित गांवों का सीमांकन कराया जा रहा है। जल्द ही अदला-बदली के लिए गांवों का प्रस्ताव तैयार कर जिलाधिकारी को भेज दिया जाएगा।
🔴 फैसले से ग्रामीणों में खुशी की लहर
यूपी और बिहार की सीमा से सटे गांवों की अदला-बदली से ग्रामीणों में खुशी का माहौल है। उनका कहना है कि ऐसा हुआ तो गांव के विकास का रास्ते खुल जाएंगे। प्रखंड व जिला मुख्यालय जाने के लिए पच्चीस से तीस किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी। बेहतर कनेक्टिविटी के साथ क्षेत्र का सामाजिक व आर्थिक विकास भी होगा। किसानों को भी खेतीबाड़ी में सहूलियत होगी। बिहार के नौरंगिया के पास बालगोविंद और मरछहवा में किसानों के बीच उत्पन्न विवाद पर विराम लगेगा। दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद भी समाप्त हो जाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि हमलोग गांवों की अदला-बदली होने का इंतजार कर रहे हैं। इससे हमें कई तरह की सुबिधा मिलेगा हमें अनुमंडल व जिला मुख्यालय आने में जाने के लिए यूपी के रास्ते अपने ही राज्य की सीमा में प्रवेश करना पड़ता है। अतिरिक्त दूरी तय करने के साथ अवागमन में परेशानी होगी है। यूपी के कुशीनगर में जुड़ने के बाद हमलोगों की कनेक्टिविटी सीधे-सीधे जुड़ जाएगी। राज्य में चलने वाली योजनाओं का लाभ भी सीधा हमलोगों के दरवाजे पर पहुंचेगा।
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