मैनपुर कोट: यहा पाण्डवों ने बिताया था अज्ञातवास - Yugandhar Times

Breaking

Tuesday, October 12, 2021

मैनपुर कोट: यहा पाण्डवों ने बिताया था अज्ञातवास

🔴 आस्था और विश्वास का केन्द्र है मैनपुर कोट

🔴महाभारत काल मे पाण्डवों ने बिताया अज्ञातवास, श्रीलंका के बौद्ध धर्मग्रंथ मे वर्णित है मैनपुर भगवती की महिमा

🔴 संजय चाणक्य 
कुशीनगर। भगवान तथागत की  परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर से महज 12 किमी दूर खौवा व बाड़ी नदी के बीच स्थित मैनपुर कोट जनपद ही नही वरन प्रदेश व राष्ट्रीय पटल पर भी आस्था और विश्वास केन्द्र है। ऐसी मान्यता है है कि माँ के दरबार मे सच्चे मन से हाजिरी मात्र लगा देने से लोगों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मैनपुर कोट आध्यात्मिक व पौराणिक स्थल के रूप में सर्वमान्य है। वैसे तो यहां साल के 365 दिन श्रद्धालुओं की भीड लगी रहती है लेकिन नवरात्र के दिनो यूपी-बिहार सहित अन्य प्रान्तो से भी माँ के भक्तो का तांता लग जाता है। इस सिद्ध पीठ का उल्लेख न सिर्फ श्रीलंका के बौद्ध ग्रंथ दीपवंश में भी वर्णित है। बल्कि महाभारत काल से भी जुडा है। यही कारण है कि हर कोई जगत जननी के इस दरबार मे खिचा चला आता है। 

कहना न होगा कि सिद्ध पीठ के रूप मे विख्यात मैनपुर कोट  साधना का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां के मंदिर के पुजारी मौनी बाबा की मानें तो यहा साधकों की भरमार लगी रहती थी। शांत और निर्जन स्थल होने की वजह से अधिकांश साधक इस क्षेत्र को चुनते थे। अपनी साधना में लीन साधकों से जुड़ी कई किदवंतियांं आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं। मौनी बाबा कहते है कि साधक जीवनदास बाबा का जीवन बहुत ही अचरज से भरा था। कहा जाता है कि जीवनदास बाबा अपने शरीर के हर एक अंग को बाहर निकाल कर साफ किया करते थे। उनकी साधना सिद्ध होने के बाद अन्य साधकों को इस ओर ध्यान आकृष्ट हुआ। जीवनदास बाबा बड़ी ही सफाई से अपने पेट के भीतर के अंगों को भी बाहर निकल लेते थे और उन्हें साफ करने के बाद पेट मे भीतर पहले की ही तरह फिट कर देते थे।
🔴 मल्ल राजाओं की छावनी थी मैनपुर कोट
काबिलेगोर है कि ऐतिहासिक  कुशीनारा जो वर्तमान मे कुशीनगर के नाम जानी जाती है। इसका उल्लेख बौद्ध धर्मग्रंथ दीपवंश में भी मिलता है। धर्मग्रंथ दीपवंश मे किए गए वर्णन के मुताबिक कुशीनगर मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। मल्लो ने मैनपुर को अपनी छावनी बनाया था। इसमें भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थली का उल्लेख के साथ ही मैनपुर को छावनी के रूप में वर्णित किया गया है। दीपवंश से वर्णित है कि मैनपुर कोट की देवी माँ मल्लों की अराध्य थी। किसी भी युद्ध मे जाने से पहले या कोई आपदा आने पर मल्ल राजा पहले माता मैनपुर के दरबार मे हाजिरी लगाते थे और  पूजन-अर्चन करते थे। इसके बाद ही निदान या युद्धघोष किया जाता था। माता के कृपा से ही मल्लों और उनके राज्य के लोगों के उद्धार होने का विश्वास था।

🔴 पांडवों ने बिताया था अज्ञातवास
जनश्रुतियों के मुताबिक मैनपुर कोट का संबंध महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय पांडय यहां पर आकर कुछ समय बिताए थे। उस समय यह क्षेत्र देवारण्य के रूप में विख्यात था।

🔴 मैनपुर की भगवती है बंजारो की कुल देवी
ऐसा कहा जाता है कि बेतों के घने जंगल से घिरे इस क्षेत्र के आसपास बंजारों की घनी आबादी थी। वह मैनपुर भगवती को अपना कुल देवी मनाते थे। बंजारें यहां पूजा-अर्चना करते और माता का आशीष लेते थे। बताया जाता है कि बीसवीं शताब्दी तक यहां बंजारों का निवास था। बंजारें इस देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते रहे। आज भी आसपास मौजूद बेंत इसके साक्षी है। 

🔴 लोगों की आस्था और विश्वास
मैनपुर कोट से लोगों की आस्था और विश्वास बहुत गहरी है। कहते हैं कि एक राजपूत परिवार के 10 वर्षीय पुत्र की असमय मृत्य हो गयी। उस परिवार ने कोट की भगवती के इस स्थान के पास ही उसे दफन कर कई दिनों तक यहां रुककर माता की पूजन-अर्चन की और पुत्ररत्न की कामना की। माँ की कृपा से राजपूत परिवार को पुनः पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। इसके बाद से ही यहा आने वाले अधिकांश श्रद्धालु भी पुत्ररत्न की मनोकामनाएं लेकर माता के दर्शन को आते हैं और माता भगवती मनोवांछित इच्छा पूरी करती है। 


No comments:

Post a Comment

Post Top Ad

Responsive Ads Here