अनाथ आश्रम की आड़ धर्म परिवर्तन का खेल - Yugandhar Times

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Saturday, July 17, 2021

अनाथ आश्रम की आड़ धर्म परिवर्तन का खेल

🔴 राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य ने जांच के बाद किया खुलासा, डीएम सहित प्रमुख सचिव व निदेशक को भेजी रिपोर्ट

🔴 आयोग की सदस्या के जांच मे संस्था पर लगे की गंभीर आरोप

🔴 संजय चाणक्य 
कुशीनगर । जिसकी सुगबुगाहट वर्ष से हो रही थी उसकी पुष्टि आखिरकार सूबे की राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की जांच मे हो गयी। जी हा। हम बात कर रहे है पडरौना नगर के परसौनी कला मे अवैध रूप से संचालित शिरीन बसुमता नारी संस्थान की, जहां दबी जुबान इस बात की चर्चा जोरो पर है कि संस्थान की संचालिका द्वारा अनाथ आश्रम की आड़ मे बच्चों का धर्म परिवर्तन कराया जाता है। गुरुवार को राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डा0 शुचिता चतुर्वेदी ने जब अनाथ आश्रम की मौका-ए-स्थल पर पहुची तो जहां तमाम गंभीर कमिया सामने आयी वही बच्चों के धर्मातरण कराने की पुष्टि हुई। आयोग की सदस्य ने अपनी रिपोर्ट मे की गंभीर आरोप लगाते हुए डीएम सहित प्रमुख सचिव व निदेशक महिला कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश शासन को भेजा है।

मौके पर जांच करने पहुची राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डा0 शुचिता चतुर्वेदी ने जांच के दौरान पाया कि अनाथ आश्रम बिना पंजीकरण के अवैध रूप से संचालित हो रहा है। बच्चों से पूछताछ मे धर्मातरण कराने, संकरी व सीमित जगह मे पच्चीस बच्चों को रखने सहित कई गंभीर मामले भी जांच के दौरान प्रकाश मे आया। गंदगी और दुर्व्यवस्था समेत कई मामलो मे आयोग की सदस्य ने अनाथ आश्रम संचालिका शिरीन बसुमता को फटकार भी लगायी।
🔴 डीएम व प्रमुख सचिव को भेजा रिपोर्ट
जिलाधिकारी एस राजलिंगम सहित प्रमुख सचिव महिला कल्याण एंव बाल विकास उ0प्र0 शासन और निदेशक महिला कल्याण विभाग लखनऊ को भेजे गये अपनी रिपोर्ट मे आयोग की सदस्य ने लिखा है कि उन्होंने 15 जुलाई को शिरीन बसुमता नारी संस्थान पडरौना के अनाथ आश्रम का औचक निरीक्षण किया। यह संस्था किशोर एवं बालकों की देखरेख एवं संरक्षण अधिनियम 2015 तथा अधिनियम के आदर्श नियम 2016 कै प्रावधानों के खिलाफ काम कर रही है। इस अनाथ आश्रम में लगभग 25 बच्चे हैं, जो पांच वर्ष से लेकर 18 वर्ष की आयु तक के हैं। उन्हें बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया है, जो अधिनियम की धारा-32 का उल्लंघन है। सभी बच्चों के नाम बदले गए हैं। उनके नाम के आगे बसुमता जोड़ा गया है। यह संस्था की संस्थापक शिरीन का उपनाम है। आयोग की सदस्य डा0 शुचिता चतुर्वेदी द्वारा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि संस्था में लड़के और लड़कियां विभिन्न आयु वर्ग के हैं, लेकिन सभी एक साथ रह रहे हैं। यह आदर्श नियम 2016 के नियम 29(6) बी का उल्लंघन है। जांच के दरम्यान संस्था ने बच्चों से संबंधित कोई पत्रावली नहीं प्रस्तुत किया । बच्चों से जुड़ा सिर्फ एक रजिस्टर बना है। इसके प्रत्येक पेज पर बच्चो का संक्षिप्त परिचय लिखा है। उसमें बच्चों की संपूर्ण जानकारी नहीं है जो यह भी नियम विरुद्ध है। रिपोर्ट मे कहा गया है कि संस्था के संस्थापिका अपने परिवार के साथ रहती हैं। उनके दो लड़कों की शादी हो चुकी है, जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ उसी भवन में रहते हैं। इसके अलावा अन्य कई बिंदुओं पर भी आयोग की सदस्य ने आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद अभी तक संस्था के विरुद्घ कोई कार्रवाई नहीं हुई है।  डीएम को लिखे पत्र में उन्होंने कहा है कि बच्चों को उनकी आयु के अनुसार उचित संस्थाओं में बाल कल्याण समिति के माध्यम से स्थानांतरित कराएं। साथ ही इससे संबंधित कार्रवाई से एक सप्ताह के अंदर अवगत भी कराएं।
🔴 डीएम बोले-
जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने बताया कि आयोग की सदस्य का पत्र प्राप्त हुआ है। उनके निरीक्षण के दौरान आश्रम में मिली कमियों और शिकायतों की जांच के लिए एसडीएम सदर को निर्देश दिया गया है। जांच में यदि आरोप सही मिलते हैं तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। बिना आरोप साबित हुए किसी पर कार्रवाई नहीं की जा सकती।
🔴 सभी बच्चों का कराया गया है धर्म परिवर्तन - डा0 शुचिता
उत्तर प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि अनाथ आश्रम का पंजीकरण नहीं है। आश्रम में मौजूद सभी बच्चों का धर्म परिवर्तन करा लिया गया है। 25 बच्चे हैं, जिनके नाम के साथ बसुमता जोड़ा गया है। बहुत कम जगह में सभी बच्चे रहते हैं। इस बारे में डीएम को पत्र भेजा गया है। इसके साथ ही महिला कल्याण एवं बाल विकास, उत्तर प्रदेश शासन और निदेशक महिला कल्याण विभाग, लखनऊ को पत्र भेजकर मामले से अवगत कराया गया है।
🔴 अफसरों के दबाब को देखते हुए न्यायालय का लिया शरण- बसुमता
पडरौना क्षेत्र के परसौनी कला मे दो दशक से अवैध रूप से अनाथ आश्रम संचालित कर रही शिरीन बसुमता नारी संस्थान की संचालिका शिरीन बसुमता का कहना है कि पच्चीस बच्चों को रखने के लिए उनके पास जगह की कमी है। इस पर बाल कल्याण समिति की तरफ से बच्चों को सरेंडर करने के लिए कहा गया था। जिन बच्चों को हमने बचपन से पाला है, उन्हें सरेंडर करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि इस मामले में अफसरों के दबाव को देखते हुए दो साल पहले हाईकोर्ट की शरण ली। मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है।

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