.... और अब नही दिखता है गांवो मे लाला साफे का रुतबा - Yugandhar Times

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Monday, June 28, 2021

.... और अब नही दिखता है गांवो मे लाला साफे का रुतबा

🔴 कभी गांवो चौकीदारो की बोलती थी तूती, आज अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे

🔴 थाने के सिपाही और साहब की बेगारी तक सिमटा चौकीदारो की ड्यूटी

🔴 विष्णु श्रीवास्तव 

कुशीनगर ।कभी गांव के कोतवाल कहे जाने वाले लाल साफाधारी चौकीदार आज उपेक्षा के कारण अपनू अस्तित्व के लिए जूझ रहे है। किसी जमाने मे साहब की तरह रौब जमाने वाले लाल साफाधारी आज अपने मूल कार्यो को छोड थाने के साहब की सेवा करने मे जुटे है। यही कारण है जिस पर साहब और सिपाही मेहरबान रहते है उनकी तो चांदी रहती है और जिन पर इनकी भुकुट टेढ़ी रहती है वह बेचारे फाकाकशी की जिन्दगी गुजारने के लिए मजबूर है।

बेशक। ब्रिटिश हुकूमत मे गांवो की निगहबानी के लिए चौकीदारो की नियुक्ति की नियुक्ति की गयी थी। सिर पर लाल साफा, एक हाथ मे लाठी और एक हाथ मे टार्च या लालटेन लेकर जब यह गांव मे निकलते थे तो इनका रुतबा देखने को बनता था। गांव मे यह किसी कोतवाल के कम इनका रुतबा नही होता था। रात मे जागते रहो.. के इनके उदघोष सुन चोर दुबकने के लिए विवश हो जाते थे। यह लाल साफाधारी गांव की गतिविधियों पर जहां नजर रखते थे वही चोरी, डकैती, लूट समेत अन्य घटनाओं की जानकारी पुलिस को देते थे। पडरौना से सटे नोनियापट्टी गांव के झूलन कहते है कि पहले जब गांव मे चौकीदार गांव मे घूमते थे तो लोग समझ जाते थे कि गांव मे पुलिस आने वाली है। चौकीदारो को देख लोग अपने घरो मे ऐसे दुबकी लगा लेते थे मानो कोतवाल आ गए। लेकिन आज स्थिति ठीक इसके विपरीत हो गयी है। चौकीदारो द्वारा गांव के लोगो पर रौब दिखाना तो दूर, अबआम जनता छोटी-छोटी बातो पर इन चौकीदारो पर ही आँख तडेड देती है। और बची-कच्ची औकात का कचुमड़ थाने के साहब और सिपाही बेगारी कराकर निकल देते है। चौकीदार संघ के अध्यक्ष कहते है कि चौकीदारो की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। शासन-प्रशासन की ओर से भी उन्हें को सुविधा नही मिलता है। थाने मे भी सिपाही से लगायत थानेदार उनकी उपेक्षा करते है। इनकी पीड़ा सुनने वाला कोई नही है जबकि पहले चौकीदारो की ऐसी स्थिति नही थी। तमकुहीराज निवासी रामप्रवेश का कहना है कि उनके दादाजी और पिताजी भी चौकीदार रहे। लोग बताते है कि जब हमारे दादा चौकीदार थे तो गांव मे उनकी बहुत इज्जत और रुतबा हुआ करता था, लेकिन आज स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। रुतबा की बात कौन कहे आज गांव मे न कोई चौकीदार को कुछ समझता है और न ही थाने के सिपाही चौकीदारो से सीधे मुंह बात करते है। स्थिति इतनी बदतर हो गयी है कि चौकीदार अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे है। उन्होंने कहा कि थाने मे जो लोग सिपाही और साहब की बेगारी करते है उनकी ही केवल पूछ है।

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