"यस्य पूज्जंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:।" अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहा देवताओं निवास करते है। किन्तु अफसोस चंद्रमा पर घर बनाने का सपना देखने वाले इक्सवी सदी के युगदृष्टाओ के हाथो नारी कही अपमानित हो रही है तो कही दहेज की वेदी पर चढ रही है। नारी को भोग की वस्तु समझने वाले नासमझ यह नही जानते कि नारी संवेदना है भावना है, एहसास है। नारी जगत है, जननी है, नारी के बिना सृष्टि की कल्पना अधूरी है। ऐसे मे नारी के सम्मान और उसके अस्तित्व को कम आकना अवसादग्रस्त मानकसिकता का घोतक कहना गलत नही होगा। कहना न होगा कि महिला दिवस पर महिलाओं के सम्मान मे जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए जाते है इन कार्यक्रमों मे नारी को माँ दुर्गा व माता लक्ष्मी का दर्जा देकर लंबे-चौड़े भाषणबाजी कर खूब ताली और वाहवाही बटोरी जाती है। उसके बाद फिर... वही यातना, प्रताड़ना और अत्याचार के दौर मे नारी अपने जीवन की गाडी आगे बढाने लगती है। लेकिन अब इस धारणा को बदलने की जरूरत है क्योंकि महिलाए किसी से कम नही है। महिलाओं की सेना मे भागीदारी और बेटियों को लडाकू विमान उडाते देखकर यह गर्व के साथ कहा जा सकता है महिलाए, पुरुषों की भाँति कंधे से कंधे मिलाकर चल रही है। फिर उनके साथ भेदभाव क्यो? सभी जानते है कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1975 मे विश्वव्यापी स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाना शुरू किया। 1977 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सदस्य देशों को महिलाओं के अधिकारों और विश्व शांति के लिए 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए संयुक्त रूप से प्रस्ताव रखा । अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पहली थीम थी 'सेलीब्रेटिंग द पास्ट, प्लानिंग फ़ॉर द फ्यूचर.' वैसे तो 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था। लेकिन अधिकारिक रूप से मान्यता 1975 में मिली।
बेशक! नारी सशक्तीकरण और नारी सम्मान के लिए केन्द्र की मोदी और उ0प्र0 की योगी सरकार का काफी गंभीर और संकल्पित है। यही वजह है कि पूर्ववर्ती सरकारों की अपेक्षा मौजूदा सरकार मे महिला सशक्तीकरण, महिलाओं के उत्थान, अधिकार व सम्मान के साथ-साथ महिलाओं को स्वावलंबन बनाने के लिए न सिर्फ तमाम योजनाएं चलायी जा रही है बल्कि सरकार की उन जनकल्याणकारी योजनाओं को जरुरतमंदो तक पहुचाने के लिए सरकारी मशीनरी व अन्य संस्थाओं द्वारा जागरूक भी किया जा रहा है इसमे विधिक सेवा प्राधिकरण की भूमिका सबसे सक्रिय देखी जा सकती है। बावजूद इसके महिलाओं की स्थिति जस की तस बनी हुई है। हालांकि इस बात से इंकार नही किया जा सकता है कि आज के दौर मे कुछ हद तक महिलाओं के स्थिति मे पहले के अपेक्षा बदलाव देखा जा सकता। इसमे कही दोराय नही है कि आज के दौर मे महिलाओं को किसी पर निर्भर होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। वह हर मामले में आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हैं और पुरुषों के बराबर सब कुछ करने में सक्षम भी हैं। हमें महिलाओं का सम्मान, जेंडर के कारण नहीं बल्कि स्वयं की पहचान के लिए करना होगा। हमें यह स्वीकार करने मे तनिक भी गुरेज नही होना चाहिये कि घर और समाज की बेहतरी के लिए पुरुष और महिला दोनों का समान रूप से योगदान हैं। हमे यह नही भूलना चाहिए कि हमे जीवन देने वाली महिला है। वह हर स्थिति मे विशेष है चाहे वह घर की चारदीवारी मे गुजर-बसर कर रही हो या फिर आफिस मे बैठकर दुनियादारी मे हाथ बटा रही महिला हो। यह मत भूलिए महिलाए अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला रही हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बच्चों की परवरिश के साथ-साथ उनमे अच्छे संस्कार का बीजरोपण भी नारी रुपी माँ ही करती है। इसके अलावा घर को घर बनाने में एक नारी की प्रमुख भूमिका को नजरअंदाज नही किया जा सकता है। ऐसे मे यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस महिला का सम्मान और उसके कार्यो सराहना करें जो अपने जीवन में सफलता हासिल कर दुनियादारी मे अपनी भागीदारी निभाते हुए पुरुषों के कंधे मजबूत कर रही है। यकीन मानिए, नारी हर रुप मे पवित्रता की वह धरा है जिसका सम्मान सर्वपरि है। हम यह कैसे भूल सकते है कि इस संसार मे हमे लाने वाली नारी हमारी माँ है। हम यह कैसे भूल सकते है कि मा-बाप का घर छोडकर अपनी पूरी जिंदगी किसी परपुरुष पर न्वछावर करने वाली हमारी पत्नी है, पिता की डबडबाई आखो को देखकर फफक-फफक कर रोने वाली हमारी बेटी है और हम कैसे भूल सकते है कि अपने भाई की हर बलाए अपने सिर लेने वाली बहन भी एक नारी है। ऐसे कहना लाजमी है कि नारी के बिना संसार का कल्पना करना बेमानी है। चलते चलते बस यही इंतजा है कि महिला दिवस पर नारी के सम्मान व महत्व पर मेरे द्वारा लिखी गयी दो-टूक बाते अगर किसी एक के दिल मे उतर जाए मेरा लिखना सार्थक हो जायेगा।
‼️ जय जननी‼️
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