🔴 अबकी बार 39 ग्राम पंचायतों में आरक्षित होगा प्रधान का पद अनुसूचित जनजाति के लिए
🔴 18 ग्राम पंचायतों मे नही है किसी के पास अनुसूचित जनजाति का*
🔴 युगान्धर टाइम्स न्यूज नेटवर्क
कुशीनगर। जनपद मे अबकी बार अनुसूचित जनजाति के लिए 39 ग्राम पंचायतों में प्रधान का पद आरक्षित करने का प्रस्ताव है। लेकिन प्रस्तावित 39 में से 18 ग्राम पंचायतों में किसी भी व्यक्ति के पास अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र ही नहीं है। ऐसे मे कहना लाजमी होगा कि प्रमाण पत्र न होने के कारण इन ग्राम पंचायतों मे चुनाव लडने के लिए उम्मीदवार खोजे नही मिलेगे। कहना न होगा कि पिछली बार भी 12 ग्राम पंचायतों में एसटी श्रेणी का उम्मीदवार नही होने के चलते ग्राम प्रधान का पद रिक्त रह गया था। नतीजतन पांच वर्षों तक एडीओ पंचायत प्रशासक बनकर प्रधान की भूमिका मे रहे। यही कारण है कि इस बार प्रशासन ने पहले ही इसकी रिपोर्ट भेजकर शासन से दिशा निर्देश मांगा है।
काबिलेगोर है कि जिले में इस बार कुल 1003 ग्राम पंचायतें हैं। वर्ष-2011के जनगणना की जिस रिपोर्ट के आधार पर पंचायत चुनाव हो रहा है, उसने आरक्षण को लेकर एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। जनगणना के आंकड़ों के आधार पर इस बार भी 39 ग्राम पंचायतों में ग्राम प्रधान का पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो रहा है। आरक्षण से पहले प्रस्तावित गांवों में अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्रों का सत्यापन कराया गया। इनमें से दल बहादुर छपरा, जंगल चौरिया, परगना छपरा, बिहार खुर्द, परसौन व रामपुर पट्टी समेत 18 ऐसी ग्राम पंचायतें चिन्हित की गईं है जहां अभी तक अनुसूचित जनजाति का एक भी प्रमाण पत्र किसी को जारी ही नहीं हुआ है। बताया जाता है कि इन गांवों में रहने वाले किसी भी व्यक्ति ने अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र के लिए आवेदन भी नहीं किया है। ऐसी दशा में अगर इन गांवों में प्रधान या किसी अन्य पद पर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण तय होता है तो वहां उम्मीदवार ढूढने से भी नही मिलेगे। ही डीपीआरओ राघवेंद्र द्विवेदी का कहना है कि पंचायतीराज विभाग ने इसकी रिपोर्ट भी शासन को भेजी है। वहां से अगर कोई दिशा निर्देश जारी होता है तो इस मामले पर विचार किया जाएगा।
🔴 पिछली बार 12 ग्राम पंचायतो मे एडीओ रहे प्रधान की भूमिका मेगौरतलब है कि वर्ष 2011 के जनगणना रिपोर्ट के आधार पर हुए आरक्षण के चलते वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव में भी 40 सीटें अनुसूचित जनजाति श्रेणी के लिए आरक्षित थीं, लेकिन कई गांवों में उम्मीदवार ही नहीं मिले। दो बार उप चुनाव होने पर कुछ ग्राम पंचायतों में महिलाओं ने देवरिया से अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र निर्गत कराकर चुनाव लड़ा। इसके बाद भी 12 ग्राम पंचायतों में प्रधान पद का चुनाव नहीं हो पाया और वहां बाद में एडीओ पंचायत को प्रशासक नामित करना पड़ा था। नतीजतन पूरे पांच वर्षों तक एडीओ पंचायत सरकारी मुलाजिम कम प्रधान के भूमिका मे ज्यादे रहे।
🔴 लोगो को पता ही नही संख्या दर्शा दी गयी
जनगणना रिपोर्ट के आधार पर जिन ग्राम पंचायतों में अनुसूचित जनजाति की संख्या दर्शायी गई है, वहां अनुसूचित जनजाति जाति का किसी के पास जाति प्रमाण पत्र ही नहीं है। उदाहरण के तौर पर सेवरही ब्लाक के परसौन गांव में एसटी श्रेणी की संख्या 257, तमकुहीराज ब्लाक के बिहार खुर्द में 454, विशुनपुरा ब्लाक के परगनछपरा में 169 दर्शायी गई है, लेकिन इस गांव में किसी के पास अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र नहीं पाया गया है। पिछले पंचायत चुनाव में पडरौना ब्लाक के चौपरिया गांव को अनुसूचित जनजाति श्रेणी के लिए आरक्षित किया गया था, परंतु तीन बार हुए उप चुनाव में भी उम्मीदवार नहीं मिलने के चलते ग्राम प्रधान का पद रिक्त रह गया और पांच साल तक एडीओ पंचायत ही प्रशासक बने रहे। इस बार भी लोग आरक्षण की आशंका से सहमे हुए हैं।
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