🔴 युगान्धर टाइम्स न्यूज नेटवर्क
कुशीनगर। यूपी-बिहार सीमा से सटे ऐतिहासिक बांसी धाम घाट पर सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर श्रद्धालुओं ने बासी नदी मे आस्था की डूबकी लगाकर पूजा अर्चना की। इस दौरान तमाम श्रद्धालुओं ने गौ दान भी किया। हलाकि कोरोना महामारी के चलते श्रद्धालुओं की संख्या कम देखी गई।
काबिलेगोर है कि कीर्ति पूणिमा पर बासी नदी मे स्नान की महत्ता को ध्यान मे रखते हुए सोमवार को भोर से ही श्रद्धालु बांसी नदी के दोनों तटों पर बने घाट पर पहुंचने लगे। सुबह के पांच बजते ही यूपी बिहार की सीमा पर दोनों तरफ बने घाटो श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठा हो गयी। इस दौरान हर हर गंगे की जयघोष के साथ श्रद्धालुओं ने बासी नदी मे स्थान कर भगवान सूर्य देव को जल अर्पित किया। तत्पश्चात विधिवत पूजा-अर्चना के बाद गौ दान किया। हाड कपकपाने वाले इस ठंड मे भी श्रद्धालुओं की उत्साह देखने लायक थी। हलाकि जनपद के विभिन्न घाटो पर कोरोना के भय का असर साफ दिखमरहा था।
🔴 युपी बिहार प्रशासन की रही कड़ी चौकसी
एतिहासिक बांसी मेले को लेकर स्थानीय बांसी पुलिस चौकी द्वारा विशेष चौकसी बरती गई थी। इस दौरान महिला व पुरुष पुलिसकर्मियों के साथ-साथ पीएसी के जवान भी भारी संख्या मे मुस्तैद रहे।
🔴 सौ काशी एक बासी
ऐसी मान्यता है कि काशी में अपने जीवन के अंतिम दिन बिताने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापो का नाश होकर पुण्य का भागीदार होता, लेकिन यूपी-बिहार की सीमा में बहने वाली बांसी नदी के विषय मे ऐसी मान्यता है " सौ काशी एक बासी" मतलब बासी नदी मे एक बार डूबकी लगाने से काशी में सौ बार स्नान-ध्यान करने के बराबर पुण्य मिलता है। आदिकाल से चली आ रही इस मान्यता को मानते हुए कई प्रदेशों से श्रद्धालु कुशीनगर व बिहार बॉर्डर पर स्थित बांसी तट पर आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर हज़ारों की संख्या में लोग बांसी नदी में स्नान कर पुण्य के भागीदार बनते है। बांसी का यह क्षेत्र भगवान राम और उनसे जुड़े संस्मरण विभिन्न समय, काल और स्थान से जुड़ा है।
🔴 कार्तिक पूर्णिमा पर उमड़ता है श्रद्धालुओं का रेला
पवित्र बांसी नदी में कार्तिक पूर्णिमा के स्नान दान करने का काफी महत्व है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक उत्तर प्रदेश-बिहार राज्य की सीमा पर स्थित कुशीनगर जिले के जंगल सिंघापट्टी गांव से होकर गुजरने वाली बांसी नदी के किनारे भगवान राम ने माता सीता और बारातियों संग रात बिताई थी।मान्यता के मुताबिक भगवान राम ने त्रेता युग में जनकपुर में माता सीता से विवाह के बाद अयोध्या के लिए रुख किया था। बांसी पहुंचते-पहुंचते दिन ढलने लगा था। देवरण्य क्षेत्र में रूप में प्रसिद्ध यह जगह जंगलों से घिरा था और जंगली जानवरों का बसेरा था। वे खुले रूप से विचरण करते थे। इस वजह से भगवान राम की बारात से लौटने वालों की सुरक्षा में वजह से बारात यहीं रुक गयी। रात्रि विश्राम किया। सुबह बांसी में भगवान श्रीराम ने स्नान भी किया था। फिर आगे सफर तय किया।
🔴 भगवान राम ने स्थापित किया था शिवलिंग
सुबह स्नान के बाद भगवान श्रीराम शिव की आराधना करते थे। बांसी नदी तट पर रात्रि विश्राम के बाद सुबह स्नान पश्चात उन्होंने शिवलिंग बना पूजा की। घने जंगल मे स्थापित इस पिंडी के बारे में जानने वाले स्थानीय लोगों ने यहां पूजन-अर्चन शुरू कर दी थी। अब यहां आने वाला हर श्रद्धालु बांसीघाट स्थित इस शिव मंदिर में पूजन-अर्चन किये बगैर नहीं लौटता।
🔴 रामघाट नाम से प्रसिद्ध है विश्राम स्थल
बांसी धाम से एक किलोमीटर पश्चिम की ओर बांसी नदी के किनारे रामघाट स्थित है। कहते हैं यही भगवान राम के रुकने का स्थान था। यहां एक राउटी डालकर भगवान ने रात बिताई थी।
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