🔴 युगान्धर न्यूज व्यूरो
कुशीनगर। जीवित्पुत्रिका का पर्व गुरुवार को पूरे आस्था व श्रद्धापूर्वक मनाया गया। माताओं ने पूरे दिन निराजल व्रत रखा और शाम को मंदिराें में विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपन पुत्रो की लंबी उम्र की कामना की।
गौरतलब है कि पुत्र की लंबी आयु की मनोकामना के साथ जीवितपुत्रिका ( जितिया) व्रत आस्था और विश्वास कू साथ पूरे उत्तर भारत मे मानाने का प्रचलन है। हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विनी माह के कृष्ण पक्ष के सप्तमी और नवमी के बीच यानी अष्टमी को जितिया पर्व मनाया जाता है। तीन दिनो तक चलने वाले इस व्रत का शुभारंभ बुधवार सप्तमी की शाम को हुई जो नवमी तिथि शुक्रवार को सुबह पारायण तक चलेगा। सप्तमी को महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना के बाद माताए भोजन कर अष्टमी तिथि गुरुवार को अपने पुत्रो की दीर्घायु की कामना के लिए दिनभर निराजल व्रत रही।
🔴 व्रत का महत्व
कथावाचक व श्री चित्रगुप्त मंदिर के पीठाधीश्वर श्री अजय दास महाराज कहते है कि महिलाए द्वारा जितिया व्रत अपने पुत्रो की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। इन दिन सभी माएं अपने बेटों की लंबी उम्र, बेहतर भविष्य, सेहत को लेकर मंगल कामनाएं करती है। इस व्रत के दौरान मां कुछ भी खा- पी नहीं सकती है अर्थात निर्जला व्रत रखना होता है। जीवितपुत्रिका या जितिया व्रत पूरे तीन दिनों तक चलता है। मान्यता है कि माओं द्वारा इस व्रत को रखने से संतान को लंबी आयु और उज्जवल की प्राप्ति होती है।
🔴 व्रत का इतिहास
महाभारत के युद्ध में पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। सीने में बदले की भावना लिए वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। जो सभी द्रौपदी की पांच संतानें थीं। अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। क्रोध में आकर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे पर ब्रह्मास्त्र छोड दिया। इसके उपरांत भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मे संतान को देकर उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवित होने वाले इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया। तभी से संतान की लंबी उम्र और मंगल कामना के लिए हर साल जितिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है।
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