" श्रीराम की बासी " को भागीरथ का दरकार - Yugandhar Times

Breaking

Sunday, July 12, 2020

" श्रीराम की बासी " को भागीरथ का दरकार



🔴 संजय चाणक्य 
” बचाकर रखना बासी को जरूरत कल भी बहुत होगी। यकीनन आने वाली पीढ़ी इतनी पाक भी नही होगी।।” भगवान राम के इच्छा से नारायणी से निकलकर कुशीनगर जनपद के विभिन्न श्रेत्रो से होकर तकरीबन साठ किलो मीटर की यात्रा तय करने के बाद पुन: नारायणी से समाहित हो जाने वाली “बासी नदी “अपने अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत है। नदी के महत्व को ” सौ काशी तो एक बासी” लोकोक्ति से समझी जा सकती है। त्रेता युगीन पौराणिक महत्व यह कि यहा के बाशिंदों के लिए यह नदी जीवनदायिनी है। कार्तिक व माघ माह मे मोक्ष प्राप्ति के लिये लाखो की संख्या में लोग इस पवित्र नदी मे आस्था की डूबकी लगाकर तृप्त होते है। कहा जाता है कि दो दशक पूर्व तक स्वच्छ, निर्मल और कल-कल बहती यह नदी सरकारी उपेक्षा और सामाजिक मनबढई के कारण प्रदुषण के गिरफ्त मे आकर जहरीली हो गई है। ऐसे मे कहना लाजमी होगा कि भगवान राम की बासी नदी को बचाने के लिए जरुरत है एक ऐसे भागीरथ की जो अपने तप के बल पर नदी को पुनर्जीवित कर सके। 
बेशक। दुनिया की सभी सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित हुई और नदियों के किनारे ही बडे-बडे शहर बसे। शहर फैलते गये और नदियां सिकुड़ती गईं। प्रदेश की पवित्र नदियों मे शुमार बासी नदी का हाल भी कुछ ऐसे ही है। बासी नदी अब न सिर्फ मैली हो गयी है बल्कि इसके पानी भी विषैला हो गया है। सभी जानते है बासी नदी का इतिहास भगवान श्रीराम के संस्मरण, काल और स्थान से जुडा है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक उत्तर प्रदेश-बिहार सीमा पर अवस्थित कुशीनगर जनपद के सिंघापट्टी गांव से होकर गुजने वाली बासी नदी के तट पर मिथला(जनकपुर) से विवाहोपरांत लौटते समय भगवान श्रीराम माता जानकी और बरातियों के साथ एक रात रुककर विश्राम किये थे। सुबह स्नान करअपने आराध्यदेव भगवान शंकर की पूजा-अर्चना के लिए प्रभू श्रीराम ने जल सोत्र की इच्छा जताई। भगवान पुरुषोत्तम की इच्छा पर ही नारायणी नदी से एक सोत्र फूट पडा, जिसे बासी नदी के नाम से जाना जाता है। इसी नदी मे प्रभू श्रीराम स्नान करने के पश्चात देवाधिदेव महादेव का पार्थिव शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा-अर्चना की थी। घने जंगल मे स्थापित पार्थिव शिवलिंग के बारे मे जैसे – जैसे के यहा के जनमानस को ज्ञात हुआ वो यहा पूजा-अर्चना शुरू कर दिये। लोगो के सहयोग से अब उस स्थान पर एक भव्य शिव मंदिर की स्थापना हो गयी है। यहा के बासी नदी मे भगवान राम के स्नान के बाद कलातंर मे इस इस घाट को रामघाट के नाम से पुकारा जाता है। कार्तिक व माघ माह मे दूर-दराज क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालु बासी घाट पर स्नान करने के बाद यहा स्थित भगवान भोलेनाथ के मंदिर मे पूजा-पाठ करने के बाद ही अपने गंतव्य की ओर रुख करता है। पिपरा-पिपरासी, जंगल सिंघापट्टी गाव होकर गुजरने वाली पवित्र – पावन बासी नदी सेवरही के शिवाघाट के आगे पिपराघाट पर नारायणी में जाकर समाहित हो जाती है। खास बात यह है की भगवान राम की बासी नदी जो तकरीबन साठ किमी की यात्रा तय करते हुए नारायणी मे मिलती है वह सिर्फ कुशीनगर और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र को ही छूती है। यह नदी सैकड़ों गांवों को अपने जल से प्रभावित करती रहती है। इस नदी के जल सिंचाई के साथ साथ वन जीवो के प्यास बुझाने मे सार्थक सिद्ध होती थी। इतना ही नही विभिन्न जलीय जीव-जन्तुओ का रह-बसर भी थी यह नदी। कभी दो सौ मीटर की चौड़ाई मे बदमस्त बहने वाली बासी नदी आज चालीस मीटर से भी कम दायरे मे सिकुडकर नाले मे परिवर्तित हो गयी है। वर्तमान की स्थिति देख कोई भी यह कहने के स्थिति मे नही होगा कि कभी यह भरी-पुरी जींवत नदी हुआ करती होगी जिसके किनारे जीवन का विकास हुआ होगा। कहा यह भी जाता है कि कभी वेगवती बह रही भगवान श्रीराम की बासी नदी ने अपना रौद्र रुप दिखाया तो इसे बाधने के प्रयास मे कटाई भरपुरवा के कोठी टोला के समीप एक रेगुलेटर बना दिया गया। यह रेगुलेटर जनमानस के लिए भले ही वरदान साबित हुआ हो लेकिन नदी के लिये अभिशाप बन गया। रही-सही कसर जनमानस द्वारा शवदाह के पश्चात चिता का अवशेष नदी मे प्रभावित कर किया जाने लगा। बात यही खत्म नही होती लोगो ने अपने मवेशियों के मरने के बाद उनके शव भी इस नदी मे बहाकर प्रदूषित करने मे कोई कोताही नही की। नदी के किनारे बसे ग्रामीण जब अपने खेतो के सिंचाई के लिए इस नदी का उपयोग करते है तो खेतो मे प्रयोग होने वाले रसायनिक उर्वरक एवं कीटनाशक के अवशेष भी बरसात के पानी के साथ नदी मे मिलकर नदी के पानी जहरीला बना रही है। इस विषम परिस्थितियों के वजह से जलीय जीव-जन्तु विलुप्त होने लगे जिसके कारण नदी मे उगे जलीय पौधे सड-गल कर वातावरण को प्रदूषित करते है। समय रहते भगवान श्रीराम के इस पवित्र – पावन नदी का बचाव नही किया गया तो यह नदी इतिहास बनते देर नही लगेगी। अंत मे बासी नदी की पुकार दो शब्द बरबस फूट पडते है…. 
” मै कुछ कहना चाहती हू सुन सको तो सूनो। 
मै अब बहना चाहती हू सुन सको तो सुनो।। 
गंदा तो तुम कर चुके अपने गुनाहो से मुझे। 
मै गुनाह धोना चाहती हू सुन सको तो सूनो।। 
अपने अधर्म को धर्म करने मेरे पास आते हो। 
मै भी साफ रहना चाहती हू सुन सको तो सूनो।”

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad

Responsive Ads Here