हर मनोकामनाएं पूरी होती है शनिदेव के दरबार मे - Yugandhar Times

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Saturday, December 7, 2019

हर मनोकामनाएं पूरी होती है शनिदेव के दरबार मे



🔵डेढ़ सौ वर्ष पूर्व स्थापित शनि मंदिर अद्भूत और चमत्कारी है..........
🔴 आस्था और श्रद्वा का प्रतीक है नगर में स्थापित प्राचीन शनि मंदिर
🔵शानिवार को लगता भक्तो का तांता,दूर-दराज से आते है श्रद्वालु शनिदेव की दर्शन के लिए
🔴पूर्वजो की परम्परा को आगें बढ़ा रहे मंदिर के पुजारी कन्हैया शर्मा
🔴 संजय चाणक्य 
पडरौना। देवाधि देव महादेव के शिष्य और सूर्य के द्वितीय पुत्र शानिदेव की कृपा मात्र से ही न सिर्फ सारे कष्टों का अंत हो जाता है। बल्कि सुख के सारे द्वार भी खुल जाते है। भगवान शनि अपने भक्तों को कभी निराश नही करते है। यह भोलेनाथ की तरह ही दयालु और कृपालु है। जो इनकी शरण में चला गया उसके वह सरक्षक बन जाते है। पडरौना नगर में डेढ सौ वर्ष पूर्व स्थापित शनिदेव मंदिर की महिमा और चमत्कार के किस्से दुर-दुर फैले है। यही वजह है कि प्राचीन मंदिर पर भक्तों का तांता लगता है। कहा जाता है कि सच्चे मन से मांगी गयी हर मुरादे यहां पूरी होती है। 


            गौरतलब है कि नगर के विवाह भवन रोड स्थित भगवान शानिदेव की स्थापना डेढ सौ वर्ष पूर्व स्वर्गीय जानकी प्रसाद ने एक छोटे से मंदिर के रूप की थी। बुढ़वा बाबा के नाम से प्रचलित जानकी दास शनिदेव की पूजा-अर्चना करते थे। इनके निधन के बाद राम निरंजनदास उत्तराधिकारी के रूप वर्षो मंदिर की सेवा करते रहे, इनके मृत्युपरान्त पशुपतिनाथ शर्मा काफी दिनों शनिदेव के कृपापात्र बने रहे। इसके बाद कन्हैया शर्मा अपने पूर्वजों के परम्परा को आगें बढ़ा रहे है। ज्योतिगी (डाकोट) ब्राहम्ण परिवार से विलान करने वाले मंदिर के पुजारी कन्हैया शर्मा कहते है कि शनिदेव के बारे में आम तौर पर भ्रांतिया व गलत धारणाएं फैला हुआ है। अधिकांश लोग शनिदेव को क्रूर,क्रोधी व कष्टदायक देवता समझते है। शनि की साढ़ेसाती,शनि की ढैया,शनि की प्रतिकूल महादशा व अंतर्रदशा पीड़ा और संकट से घिर जाने के बाद शनिदेव की शरण में जाते है। जबकि शास्त्रों के अनुसार शनिदेव धर्माधिकारी है जो हमेशा कर्मो के अधार पर फल देते है। अनवरत बीस वर्षो से भगवान शानिदेव की पूजा अर्चना कर रहे कन्हैया शर्मा कहते है रख-रखाव के अभाव में यह मंदिर जीर्णधीर अवस्था में था। बीते कुछ वर्ष पूर्व शनिदेव ने उन्हे सपने में मंदिर की जीर्णोद्वार कराने का निर्देश दिया तो वह सोच में पड़ गए कि यह सब कैसे होगा। अर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नही है कि अपने दम पर मंदिर का जीर्णोद्वार संकू। पुजारी श्री शर्मा आगे बताते है कि दुसरे दिन मंदिर के जीर्णोद्वार की बात वह अपने पडोसी गोपाल शर्मा से किए और शनिदेव द्वारा सपने में दिए गए निर्देश से अवगत कराया। फिर क्या गोपाल शर्मा , कन्हैया शर्मा को अपने साथ लेकर शहर के सभ्रान्त और समाजसेवी लोगो से मिले और देखते ही देखते 'सूर्य पुत्र शनिदेव' का अद्भूत और मनोहारी मंदिर का निर्माण हो गया। शनिदेव के मंदिर में संकट मोचन हनुमानजी का संगमरमर की मूर्ति भी स्थापित किया गया है। जबकि शनिदेव की मूर्ति डेढ़ सौ वर्ष पुराना अमूल्य काले पत्थर का है। मंदिर पर पुजारी के रूप में विराजमान कन्हैया जी कहते है कि पहले वह हमेशा परेशान रहते थे। किसी काम को करने में मन नही लगता था आर्थिक तंगी के कारण वह मानसिक रूप से भी हमेशा उलझे रहते थे किन्तु जब से शनिदेव की शरण में गए सारे कष्ट दुर हो गए। उन्होने बताया कि शनिदेव की कृपा से ही वह अपने पूर्वजों की परम्परा को आगे बढ़ा रहे है। पुजारी श्री शर्मा ने बताया कि शनिदेव का दान सिर्फ ज्योतिगी ब्राहम्ण ही ग्रहण करते है। राजस्थान में ज्योतिगी ब्राम्हण की संख्या सर्वाधिक है जबकि अन्य शहर में इनकी संख्या सीमित है। मण्डल के गिने-चुने शनि मंदिर में सबसे प्राचीन मंदिरों में शुमार शनिदेव के इस मंदिर की अपनी अलग महत्ता है मंदिर की महिमा अपने आप में निराली है। शनिदेव के भक्तों का मानना है कि सच्चे मन से की गयी प्रार्थना को शनिदेव बहुत जल्द स्वीकार करते है और अपने भक्त को मनवाछित फल देते है। कहा तो यह भी जाता है कोई भी व्याक्ति इनके दरबार निराश नही लौटता है।


पैराणिक मान्यता के अनुसार देवाधि देव महादेव की तरह शनिदेव भी दयालु और कृपालु है। नवग्रहो में शनिदेव का विशेष महत्व है जो मानव जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। शनि की उत्पत्ति के विषय में शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्य की पत्नी छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ, शनि के श्यामवर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छायापर आरोप लगाया कि शनि मेरा पुत्र नही है। तभी से शनि अपने पिता सूर्य से शत्रुभाव रखते है। शनि ने अपने तप और साधना के बल पर भगवान शिव को प्रसन्न कर अपने जीवन के सार्थक उद्देश्य की प्रार्थना की,तो भगवान शंकर ने शनिदेव को नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर बने रहने का वरदान दिया। मंदिर के जीर्णोद्वार के विषय में गोपाल शर्मा कहते है शनिदेव की महिमा निराली है मंदिर का निर्माण कार्य महज दो हजार रूपये से शुरू हुआ और मंदिर के पूर्ण निर्माण के बाद ही कार्य बन्द हुआ। उन्होने कहा कि शानिदेव की कृपा से लोगों ने इतना बढ़चढ कर सहयोग किया कि निर्माण कार्य में पैसा कभी आड़े नही आया। उन्होने बताया कि शहर के प्रमुख समाजसेवी दीप चन्द्र अग्रवाल,संजय खेतान,प्रदीप चहाड़िया, प्रदीप अग्रवाल, आनन्द टिबडेवाल, श्याम वंका,अशोक केडिया,प्रदीप टिवडेवाल, ज्योति शरण , अशोक टिवडेवाल आदि के अलावा तमाम लोगों ने गुप्त दान कर अपना सहयोग किया है। 
'' जय जय श्री शनिदेव प्रभु,सुनहु विनय महराज !
करहु कृपा हे रवि तनय, रखहु जन की लाज !!''

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