रावण दहन- बुराई पर अच्छाई की जीत - Yugandhar Times

Breaking

Saturday, October 12, 2019

रावण दहन- बुराई पर अच्छाई की जीत

संजय चाणक्य

दशहरा एक उम्मीद जगाता है।
  बुराई के अंत की याद दिलाता है।।
  जो चलता है सच्चाई और अच्छाई की रहे पर।
  वह विजय का प्रतीक बन जाता है।। "

सैकडो बर्षों से रावण दहन की परम्परा को कायम रखते हुए कुशीनगर जनपद के पडरौना नगर के रामलीला मैदान व तमकुहीराज सहित विभिन्न क्षेत्रो मे असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई के जीत के प्रतीक विजयादशमी के महापर्व पर राक्षसराज दशानन रावण की प्रतीकात्मक स्वरूप का दहन पूरे उल्लास के साथ किया गया । रावण दहन   के दौरान उपस्थित लोकबाग खूब आनन्दित हुए रावण के बुराई और भगवान राम की अच्छाईयों पर खूब चर्चा  भी किये, मेले मे खरीदारी की और अपने घर चलते बने। लेकिन सवाल यह उठता है कि त्रेतायुग के रावण का दहन तो हम हर साल कर बुराई पर अच्छाई की जीत का हवाला देकर खुशी मनाते है किन्तु अपने भीतर के रावण का दहन हम कब करेगें।
विजयादशमी यानि विजय का पर्व, विजयादशमी मतलब न्याय और नैतिकता का पर्व है। असत्य पर सत्य की विजय का पर्व दशहरा के दिन ही भगवान श्रीराम लंकापति रावण का संहार किया था। तभी  से प्रतीकात्मक रूप से रावण का दहन किया जाता है। यह पर्व इस बात की प्रमाण है कि अन्याय और अनैतिकता का दमन हर रूप मे सुनिश्चत है। चाहे आप कितनी भी शक्ति और सिद्धियों से संपन्न क्याे न हो , लेकिन सामजिक गरिमा के विरुद्ध  किए कई आचरण से आपका विनाश निश्चत है।
कहना न होगा कि असत्य पर सत्य की विजय का पर्व दशहरा सिर्फ रावण का पुतला दहन के रूप मे बुराइयों के अंत का प्रतीक भर नहीं है, बल्कि यह उसे महायुद्ध का प्रमाण है जिसका एकमात्र उद्देश्य रामराज्य की स्थापना करना था। यह महायुद्ध सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के अवतार प्रभू श्रीराम के हाथों महा अहंकारी लंकेश रावण का अंत करके रामराज्य की स्थापना की उद्देश्य से पुरा हुआ। भगवान श्रीराम और  दशानन रावण के बीच हुए महायुद्ध मे आसुरी शक्तियो द्वारा रचा गया छल, कपट और मायावी षडयंत्र, पुरुषोत्तम श्रीराम के समक्ष निरर्थक साबित हुआ और अंततः सत्य एवं सदाचार की जीत और आसुरी शाक्त का विनाश हुआ। सभी को स्मरण है कि प्रभू श्रीराम,भगवान विष्णु के अवतार थे धरती पर  मानव जीवन के हर सुख-दुख को उन्होंने आत्मसात किया था। जब श्रीराम ईश्वरीय अवतार होकर जीवन-संघर्ष से नहीं बच सकें तो हम सामान्य मनुष्य भला इन विषमताओं से कैसे बच सकते हैं? श्रीराम का संपूर्ण जीवन हमें आदर्श और मर्यादा की सीख देता है।
बेशक! भारतीय संस्कृति में त्योहारों की रंगीन श्रृंखला गुँथी हुई है। हर त्योहार में जीवन को राह दिखाता संदेश और लोक-कथा निहित है। हम उत्सवप्रिय लोग त्योहार तो धूमधाम से मनाते है लेकिन यह भूल जाते हैं कि उनमें छुपे संदेश को समझना और जीवन जीने की कला सिखाती लोक-कथा को अपने जीवन मे उतारना भी जरूरी है। अगर हम अपनी संस्कृति को ही गहनता से समझ ले और उसे आत्मसात कर लें तो किसी और की आचरण-संहिता की हमें जरूरत ही नही पडेगी। किन्तु अफसोह आज की 'फास्ट फूड' कल्चर की 'नूडल्स' पीढ़ी के लिए त्योहार मात्र मनोरंजन का साधन बनकर रह गया हैं। यही वजह है कि आस्था और पवित्रता से सराबोर रहने वाले पंडालों में रोशनी और फूलों के स्थान पर विज्ञापन के होर्डिंग्स सजे दिखाई देते हैं। विजयादशमी की कथा यह है कि माँ सीता ने अपने पवित्र अस्तित्व को रावण जैसे परम शक्तिशाली व्यक्ति से मात्र एक तिनके और दृढ़ चरित्र के माध्यम से बचाए रखा। भगवान राम ने दुराचारी रावण का अंत किया और पुन: माता सीता को प्राप्त किया।  
हम चाहे जितना  रावण का प्रतिकात्मक पुतला जला लें लेकिन हर कोने में कुसंस्कार और अमर्यादा के विराट रावण रोज पनप रहे हैं। माता सीता के देश मे ही हर रोज  'सीता' नामधारी सरेआम प्रताड़ित और अपमानित हो रही है और संस्कृति के तमाम ठेकेदार रावणों के खेमें में खड़े होकर ताली बजाते हुए नजर आते हैं। आज देश में असली रावण कहा जलता है ? सच्चाई यह है कि हर क्षेत्र मे सिर्फ नारी रूपी सीता ही जलती है।
जब तक सही 'रावण' की पहचान कर सही समय पर नही जलाया जायेगा तब तक विजयादशमी शान्ति पूजा की सार्थकता पूर्ण नहीं होगी।
 इसी के साथ भी  को......
अधर्म पर धर्म की विजय
 असत्य पर सत्य की विजय
 बुराई पर अच्छाई की विजय
पाप पर पुण्य की विजय,
अत्याचार पर सदाचार की विजय,
 क्रोध पर दया की विजय, 
अज्ञान पर ज्ञान की विजय
,रावण पर श्रीराम की विजय 
के प्रतीक महापर्व विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
Attachments area

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad

Responsive Ads Here