संजय चाणक्य
बेशक! राजनौतिक गलियारों मे अपने तर्क से विरोधियो के जुबान पर ताला जड़ने वाले व हर विषम परिस्थितियों मे भाजपा की ओर से एक मजबूत ढाल बनकर चुनौतियों का सामना करने वाले कुशल राजनीति़ज्ञ अरुण जेटली हमारे बीच नही है लेकिन भारतीय राजनीति के इतिहास का पन्ना जब-जब पन्ना पलटा जायेगा तब-तब स्वर्गीय जेटली की कृतियाँ हिन्दवासियो के मानस पटल पर तैरती हुई नजर आयेगी। वो भारतीय सियासत के वह ध्रुव तारा थे जिन्हें भाजपा ही नही बल्कि विरोधी भी नही भुला सकते। चाहे वह कांग्रेस के युवराज राहुल गाधी हो जिनके राफेल और नोटबंदी के मुद्दे को जेटली ने अपने तर्क शक्ति से ध्वस्त कर दिया या प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी हो , जिनको 2014 में प्रधानमंत्री पद को लेकर दावेदारी का मार्ग प्रशस्त करने में न सिर्फ खुलकर समर्थन किया बल्कि मोदी के धूर विरोधी व आडवाणी के समर्थकों को मोदी के पाले मे खडा कर पार्टी की अन्दरूनी कलह पर विराम लगा दिया या फिर वर्ष 2002 के दंगों और फर्जी मुठभेड़ के आरोप मे पूरी तरह घिरे अमित शाह हो, जिन्हें बेदाग बाहर निकालने में अरुण जेटली ने अपनी राजनीतिक कुशाग्रता का प्रयोग किया था। यह सोलह आना सच है कि वर्ष 2006 मे प्रमोद महाजन के निधन के बाद अरूण जेटली पार्टी के हर मुसीबत से उबारने वाले मुख्य व्यक्ति थे।
मोदी सरकार-(एक) मे वित्त मंत्री व अटल सरकार मे सूचना एवं प्रसारण के अलावा कानून मंत्री रहे अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर 1952 को महाराज किशन जेटली और रतन प्रभा जेटली के घर हुआ। उनके पिता एक कामयाब बैरिस्टर थे। जेटली ने दिल्ली के सेंट जेवियर्स स्कूल से अपनी प्रारम्भिक शिक्षा की शुरुआत कर स्कूली शिक्षा की तालीम हासिल की। वर्ष 1973 में श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स,नई दिल्ली से उन्होंने कॉमर्स से स्नातक की पढाई पूरा करने के बाद साल 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय से वक़ालत की डिग्री हासिल की। कहा जाता है कि छात्र जीवन के दौरान जेटली शिक्षा के अलावा अन्य गतिविधियों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर कई उच्च सम्मान हासिल किए थे। 24 मई,1982 को संगीता जेटली के साथ अरुण परिणय सूत्र में बंधे और फिर उनके घर में पुत्र रोहन और पुत्री सोनाली की किलकारियां गूंजी। जगजाहिर है कि अरुण जेटली राजनीति में शामिल होने से पहले सुप्रीम कोर्ट में वक़ालत की प्रैक्टिस करते थे। उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था। 1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया, जिसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर पहले अंबाला और फिर तिहाड़ जेल में रखा गया।दिल्ली विश्व विद्यालय मे छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे जेटली वर्ष1980 मे भारती जनता पार्टी से जुडकर राष्ट्रीय राजनीत मे कदम बढाया. उनकी कार्य क्षमता को देखते हुए पार्टी हाईकमान ने महज दो वर्ष के अन्तराल में राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य निमित कर दिया। और फिर साल 1999 के आम चुनाव से पहले उन्हें पार्टी प्रवक्ता के पद आसीन कर दिया गया। बेबाकी से अपनी बात रखने और विरोधियों के हर सवाल पर फौरन पलटवार करने की खूबी ने अरुण जेटली को पार्टी का अभिन्न हिस्सा के साथ- साथ सबका चहेता बना दिया । वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की नेतृत्व वाली एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के सत्ता में आने के बाद, उन्हें सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया। साथ ही उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का भी पदभार भी सौंपा गया। 23 जुलाई 2000 को राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद अरुण जेटली ने कानून, न्याय एवं कंपनी मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभाला। उनकी कार्य कुशलता को देखते हुए चार महीने बाद ही नवम्बर 2000 में उन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत कर दिया गया और एक साथ कानून, न्याय एवं जहाजरानी मंत्री बनाया गया। साल 2004 के आम चुनावों में एनडीए की हार के बाद वे महासचिव के रूप में पार्टी की सेवा करने के लिए संगठन मे वापस आए और अपनी वकालत को भी जारी रखा।3 जून 2009 को राज्यसभा में जेटली को नेता विपक्ष चुना गया, जहां उन्होंने महिला आरक्षण विधेयक पर दमदारी से बहस कर अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा अरुण जेटली ने जन लोकपाल विधेयक के लिए अन्ना हजारे का समर्थन भी किया। कहना न होगा कि 1980 से लगातार पार्टी में सक्रिय रहने के बावजूद जेटली 2014 तक कभी कोई चुनाव नहीं लडे। साल 2014 के आम चुनाव में वह नवजोत सिंह सिद्धू की जगह अमृतसर लोकसभा सीट से बतौर भाजपा उम्मीदवार चुनावी कुरुक्षेत्र मे उतरे लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार कैप्टन अमरिंदर सिंह से उन्हें शिकस्त खानी पडी। महत्वपूर्ण बात यह है कि चुनाव मे हार के बाद भी उनके सियासी कद पर कोई फर्क नहीं पड़ा और मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें वित्तमंत्री के अहम पद पर आसीन किया गया। उनकी कार्य कुशलता नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पूरी तरह नजर आती है जब उन्होंने भ्रष्टाचार, नोटबंदी, जीएसटी , राफेल सौदे पर विवाद और तीन तलाक विधेयक जैसे कई अहम मुद्दों पर जोर-शोर से पार्टी का पक्ष रखा । सभी जानते है कि संसद में चर्चा के दौरान जेटली के तर्कों के आगे विपक्ष नि:शब्द हो जाता था। वजह यह था कि अरुण जेटली अन्य राजनीतिज्ञों के इत्तर वह सिर्फ अपनी पार्टी व सरकार के पक्ष को तार्किक ढंग से बहुत ही दमदारी के साथ रखते थे। मोदी सरकार -(एक) के कार्यकाल मे भारत के वित्तमंत्री के रूप मे जेटली ने कई कड़े और बड़े फैसले लिए। 9 नवंबर 2016 से भ्रष्टाचार, काले धन, नकली करंसी और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के इरादे से "पांच सौ" और " एक हजार" के नोटों का विमुद्रीकरण किया। सरकार के इस फैसले से हालांकि जनता को कुछ दिन तक काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस बीच विरोधियों ने इस मुद्दे पर जमकर सियासत भी की लेकिन इस कठिन दौर में भी जेटली ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए लोगों को इसके दूरगामी फायदे समझाए और साथ ही ऐसी व्यवस्था भी करवाई कि बैंकों में किसी को भी नोट बदलते समय ज्यादा दिक्कतों का सामना न करना पड़े। बतौर वित्तमंत्री उन्होंने जीएसटी जैसे रिफॉर्म देश को दिए। हालांकि, इसे लेकर उन्हें कारोबारियों और विरोधी दलों के विरोध का भारी सामना भी करना पड़ा लेकिन उन्होंने ज़मीनी स्तर पर जाकर छोटे से लेकर बड़े व्यापारियों तक अपनी पहुंच बनाई और जीएसटी के फायदे समझाए। इसके आधार पर 20 जून,2017 को उन्होंने ऐलान किया कि जीएसटी रोलआउट अच्छी तरह से और सही मायने में ट्रैक पर आ गया है। वह एक ऐसे रणनीतिकार थे जिसने कई राज्यों में पार्टी के उद्भव की गाथा लिखी। ईश्वर के प्यारे अरुण जेटली के बारे मे दो शब्दों मे बडी ही सरलता से कहा जा सकता है कि " जेटली एक शिष्ट एवं उदार चेहरा का नाम है जिसने पार्टी को कई नये सहयोगी दिए, वह अपनी बात पर अडिग रहने वाले ऐसे शख्स थे जिनकी समझाने-बुझाने की कला उनके नेतृत्व के लिए बहुमूल्य धरोहर थी।
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