नई दिल्ली [Yugandhar Times]। क्या आप जानते हैं कि दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखने वाले लेखक का क्या नाम था? नाम जानने के लिए शायद आपको अपने दिमाग पर जोर डालना पड़ेगा। आप दिमाग पर अधिक जोर न डालें, हम आपको ऐसे विरले लेखक का नाम बता रहे हैं। उनका नाम रवींद्रनाथ टैगोर है। टैगोर को लेखन के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार दिया गया था। आज ही के दिन यानि 7 अगस्त को उनकी मौत हुई थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में लगभग 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं।
बचपन से ही लोगों को मिल गया था आभास
रवींद्रनाथ टैगोर को जानने वाले बताते हैं कि उनको बचपन से ही कविता, छन्द और भाषा को समझने की अद्भुत प्रतिभा थी। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और सन् 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा भी प्रकाशित हो गई थी। उनके लेखन में गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका आदि शामिल हैं। देश और विदेश के सारे साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि उन्होंने अपने अन्दर समेट लिए थे। पिता के ब्रह्म-समाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे। पर अपनी रचनाओं व कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया।
साहित्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा हो, जिनमें उनकी रचना न हो, कविता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, शिल्पकला जैसी सभी विधाओं में उन्होंने रचना की। उनकी प्रकाशित कृतियों में गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया आदि प्रमुख हैं। उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। जब उनकी प्रतियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद हो गया उसके बाद वो पूरे विश्व में फैली।
पढ़ाई के लिए ही वो डलहौजी के हिमालयी पर्वतीय स्थल तक चले गए थे। वहां जीवनी, इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान और संस्कृत का अध्ययन किया था और कालिदास की शास्त्रीय कविताओं के बारे में भी पढ़ाई की थी। 1873 में अमृतसर में अपने एक महीने के प्रवास के दौरान, वह सुप्रभात गुरबानी और नानक बनी से बहुत प्रभावित हुए थे, इनको स्वर्ण मंदिर में गाया जाता था जिसके लिए रवींद्रनाथ अपने पिता के साथ जाया करते थे। उन्होंने इसके बारे में अपनी पुस्तक मेरी यादों में उल्लेख किया।
रवींद्रनाथ टैगोर के काम
रवीन्द्रनाथ टैगोर ज्यादातर अपनी पद्य कविताओं के लिए ही जाने जाते है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएं, नाटक और हजारों गाने लिखे हैं। उनकी छोटी कहानियों को सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता है। उन्होंने इतिहास, भाषा विज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी कई किताबें लिखी थी। अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनकी संक्षिप्त बातचीत, "वास्तविकता की प्रकृति पर नोट", एक परिशिष्ट के रूप में शामिल किया गया है। 150 वें जन्मदिन के मौके पर उनके कार्यों का एक संकलन वर्तमान में प्रकाशित किया गया। इसमें प्रत्येक कार्य के सभी संस्करण शामिल हैं और लगभग अस्सी संस्करण है।
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