संजय चाणक्य
मै माफी चाहता हू उन सभी बुद्धिजीवियो और मनिऋषियों से ! जो मा शब्द पर लम्बा.चैडा भाषण देते है किन्तु मा का सम्मान नही करते। मै माफी का तलबगार हू उन धर्मात्माओ से जो दिखाने के लिए समाजसेवा का ढोग करते है जो गरीब और बेसहारा लोगो की मदत सिर्फ समाज में दिखाने के लिए करते है लेकिन मा को वृद्धा आश्रम में छोड देते है। समाज के ऐसे महान विभूतियो को समाज के ऐसे धर्मात्माओं से मेरा हाथ जोडकर अनुरोध है कि कृपया वह इस कालम को न पढे। हो सकता है मेरे शब्द उनको नागवार लगे। यह कालम उन जिन्दा लोगो के लिए है जिन्हे मा के कदमो में जन्नत दिखाई देता है जो अपनी मां को भगवान से पहले पूजते है। जिन्दा लाशो के लिए नही बुढी मां को उम्र के अन्तिम पडाव में फेटे.पुराने कपडों की तरह घर से बाहर फेक देते है। ऐसे जिन्दा लाशो को यह कालम निश्चत रूप से बकवास लगेगा। इस लिए वो महान विभूति लोग इस कालम को पढ अपना सिर बोझिल न करे। श्रवण मास के पावन महीने में दुनिया की सभी माँओं को समर्पित है यह कालम !!चेहरे पर झुरी पपडी पडे ओढ डबडबाई हुई पथराई आखे और तन पर फटे पुराने कपडो में जब किसी बूढी मां को देखता हू तो दिल द्रवित हो उठता है। सोचता हू गरीबी की मार ने इस बूढी मां की यह हालत कर दी है। तपती धूप में नंगें पैर सडको पर जब फटे.पुराने कपडो में किसी बूढी मां को भीख मागंते हुए देखता हू तो बरबस यह सोचने पर विवश हो उठता कि भूख से बिलबिलाते अपने कलेजे के टुकडे का पेट की आग को बुझाने के लिए मां क्या क्या नयी करती। निश्चत तौर पर वह श्री हरि विष्णु की प्रतिमूर्ति है जो अपने बच्चो को पलने के लिए अपने प्राणो की आहुति देने के लिए भी हर समय तत्पर रहती है। फिर सोचता कि जब इस मा के बच्चे बडे हो जायेगे अपने पैर पर खडे हो जायेगें दो पैसा कमाने लगेगे तो इस इस बूढी मा के दुःख दुर हो जायेगें। लेकिन खून तब खौल उठता जब मां के रहमो..करम त्याग और तपस्या के बाद बच्चे बडे हो जाते है अपने पैर पर खडा हो जाते हैए और दो पैसा कमाने लगते है तब अपनी दुनिया में खोकर मां को भूल जाते है। खून खौल उठता है ऐसे लोगो पर जो बेजान चीजो से अपने घरो को भरकर घर की शोभा बढाते है और जन्म देने वाली व समाज में पहचान दिलाने वाली मां को फुटपाथ पर छोड देते है। सच कहू तो ऐसे लोगो को नक में भी जगह नही मिलना चाहिए। इतिहास साक्षी है जिसने भी बुलन्दियों को छुआ है वह मां के आर्शीबाद से ही छुआ है। माँ हर पल तुम साथ हो मेरे मुझको यह एहसास है आज तू बहुत दूर है मुझसे पर दिल के बहुत पास है।। तुम्हारी यादों की वह अमूल्य धरोहर आज भी मेरे साथ है जिंदगी की हर जंग को जीतने के लिए सिर पर मेरे आज भी तेरा हाथ है। यह कैसी विडम्बना है पश्चिमी सभ्यता की कोख से उत्पन्न वेलेनटाइन.डे पर बाजार में रौनक रहती है और बाजारवादी तमाम तरह के ग्रीटिंग बेचने में मशगूल रहते है। प्रेमी.प्रेमिका भी अपने प्रेम का इजहार करने के लिए उत्साहित और व्याकुल दिखते है। और मीडिया भी इसे विशेष बनाने में लगी रहती लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अनमोल संस्कुति को जन्म देने वाली आर्यो की धरती पर जन्म लेने वाले हिन्द के बाशिन्दे हिन्द कर्णघार मदर डे के प्रति उतना उत्साहित क्यों नही दिखे। हिन्द के युवाओं को तो शर्म से डूब मरने की बात है। हिन्दुस्तान के भविष्य कहे जाने वाले आज के नवयुवक कहां जा रहे है! क्या यही देश के भविष्य है अगर सचमुच यही देश के भविष्य है तो यह हमारे पूर्वजों के लिए र्दुभाग्य और राष्ट्र के लिए अपशगुन है। भाड़ में जाए ऐसे देश के भविष्य जिन्ह अपने सस्कृति की तनिक भी चिन्ता नही है जिन्हे जन्म देने वाली मां के बारे में सोचने की फुर्सत नही है घेर लेने को मुझे जब भी बलाएं आ गईं ! ढाल बनकर सामने माँ की दुआएं आ गईं सच कहे तो मा पर लिखी हुई पक्तियों को पढने वाले की तादात गिने.चुने है। ज्यादातर लोगों की पहली पसन्द है व्हाइट टाइगर फिल्मी रोमास और अश्लील किताबे। पत्नी या प्रेमिका का स्वार्थपूर्ण प्रेम लोगों का पसन्द बनते जा रहा है। लेकिन मा का निस्वार्थ प्रेम आज के पीढी को पसन्द नही। उनके दिल में मा के प्रति न तो आस्था है और न ही संवेदना। क्योकि हमारी पश्चिम के बयार ने हमारी शिक्षा और संस्कृति पर कुठाराधात किया। नब्बे की दशक के बाद मायानगरी पर नजर दौडाए तो फिल्मों में मां का किरदार रस्म अदायगी भर रह गया । आज की दौड की सारी फिल्मो प्रेमी.प्रेमिका के ईर्द.गिद धुमती नजर आती है। जरा विचार तो कीजिएण्ण्। क्या मां सिर्फ चाय बनाने के लिए है। मां सिर्फ खाना बनाने के लिए है। मां आपके कपड़े प्रेस करने के लिए है। आप घूमते रहते हो दुनियाभर में अपने ऐशो.आराम के लिए लेकिन मां घर में तुम्हारे सामान सजोकर रखती है। कभी तुमने देखा कि बर्तन मांजते..मांजते मां के हाथो में ढेला पडकर घाव बन गए है। कभी तुमने देखा है कि बटन टांकते..टांकते मां के आँखों में मोतियाबिंद हो गया है अगर तुमने देखा भी है तो तुम्हे फृर्सत कहा है डॉक्टर के पास जाने की। दो दिन से मा को चक्कर आ रहे हैं तुमने भी ग्लुकोज पीने की सलाह देकर अपने दायित्वों का इतिश्री कर लिया।क्योंकि तुम अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ मनाली घूमने की प्लानिंग जो बना रहे हो तुम्हे क्या मालूम कि तुम्हारी खुशियों के लिए मांगी गई मन्नतों को पूरा करने के लिए म पिछले तीन साल से मथुराएवृंदावन और काशी विश्वानाथ की दर्शन करने के लिए तुमसे कह रही है। हज के लिए ख्वाजा साहिब से मन्नतें मांग रही है लेकिन हर बार तुमने कह दिया कि अभी ऑफिस में बहुत काम अभी गर्मी बहुत है या इस साल तंगी है मुन्ने के स्कूल की फीस जमा करनी है।
संगे मरमर की तू बात न कर मुझसे !
मैं अगर चाहूँ तो एहसास..ऐ..मोहब्बत लिख दुं !!
ताज महल भी झुक जाएगा चूमने के लिए !
मै जो एक पत्थर पे माँ लिख दुं !!
खैर। एक दिन मां चली जाती है अपनी सारी इच्छाएं दिल में ही रखकर भगवान के घर और उस दिन छुते हो तुम उसके पैर जबकि वह जिंदा थी तो एक बार भी तुमने उसके पैर नहीं छुए। यदि छू लिए होते तो उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जातीं। काश तुमने कभी जीते जी मां के पैर छू लेते काश मदर डे पर मा के पैर छु लेते तो निश्चत तौर पर तुम आसमना पर अपना नाम लिख देते और जब दुनिया से विदा होते तो मां जन्नत के द्वार पर तुम्हारा स्वागत करती। कभी भी कुछ नही बिगडा है। वो कहते है न सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नही कहते। सावन के इस पवित्र महीना चल रहा है उठोण्ण्मा के पास जाओ मा के चरणों में अपना सिर रखकर बोलो... मा तुझे शत शत प्रणाम ! " मै "क्षमायाची हू। अगर मेरे इस लेख को पढने के बाद अगर किसी कुपुत्र के मन में मां के प्रति आस्था जागृति हो जाए तो मा को समर्पित इस लेख का एक एक शब्द सार्थक हो जाएगा।
शर्त लगी थी जब पूरी दुनिया को एक शब्द में लिखने की !
लोग पूरी किताब ढूढ रहे थे ।।
और मैने एक ही शब्द में लिख दिया मा!!
No comments:
Post a Comment