Ayodhya Case: मध्यस्थता हुई नाकाम, सुप्रीम कोर्ट सुनिश्चित करे नियमित सुनवाई में न आए बाधा - Yugandhar Times

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Saturday, August 3, 2019

Ayodhya Case: मध्यस्थता हुई नाकाम, सुप्रीम कोर्ट सुनिश्चित करे नियमित सुनवाई में न आए बाधा

यह अच्छा नहीं हुआ कि अयोध्या मामले पर मध्यस्थता के प्रयास सफल नहीं हुए। मध्यस्थता की नाकामी एक अवसर गंवाने जैसा है। यह नाकामी यही बताती है कि बातचीत के माध्यम से किसी हल तक पहुंचने की कोशिश में कमी रह गई।

हालांकि बातचीत के जरिये अयोध्या मामले के समाधान की कोशिश पहले भी कामयाब नहीं रही थी, लेकिन यह उम्मीद की जा रही थी कि सुप्रीम कोर्ट की पहल पर हो रही आपसी बातचीत किसी नतीजे पर पहुंच सकती है। चूंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कि सुप्रीम कोर्ट सदियों पुराने इस विवाद को हल करे। इसमें और देरी का औचित्य इसलिए नहीं, क्योंकि देश इस मसले के समाधान के लिए सदियों से प्रतीक्षारत है। 
यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त से इस मामले की नियमित सुनवाई करने का फैसला किया। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अब नियमित सुनवाई में कोई बाधा न आने पाए। यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि एक अर्से से इस मामले में तारीख पर तारीख का सिलसिला कायम रहा है।
इसका एक कारण यह भी रहा कि कुछ लोगों की दिलचस्पी इसमें रही कि इस मामले की सुनवाई में जितनी देर हो उतना ही अच्छा। ऐसे लोग एक हद तक कामयाब भी रहे। कम से कम अब तो उन्हें कामयाब नहीं ही होने देना चाहिए। अगर वे फिर कामयाब होते हैं तो कोई अच्छा संदेश नहीं निकलेगा।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अयोध्या मामला जमीन के मालिकाना हक के विवाद के रूप में है, लेकिन यह महज जमीन का झगड़ा नहीं। खुद सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया है कि भूमि विवाद का यह मामला धर्म, आस्था और लोगों की भावनाओं से जुड़ा है। अदालतें आस्था के मामले का निपटारा आसानी से नहीं कर सकतीं। सुप्रीम कोर्ट को किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए कुछ प्रमाण चाहिए होंगे। उसे यह देखना है कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मस्जिद के स्थान पर पहले मंदिर था या नहीं? 
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर यह पाया था कि मंदिर के स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया। कुछ अन्य साक्ष्य भी यही स्थापित कर रहे थे कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई। अयोध्या की इस हकीकत से वे भी परिचित हैं जो विवादित स्थल पर मस्जिद निर्माण की जिद पकड़े हुए हैं।
चूंकि वे न तो यह समझने को तैयार हैं कि आखिर अयोध्या में बाबर अथवा सेनापति का क्या काम था और न ही यह कि राम के नाम का मंदिर उनके जन्म स्थान पर नहीं बन सकता तो और कहां बनेगा इसलिए अदालती फैसला ही आखिरी सहारा है।

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